केंद्र सरकार ने गंगा सफाई के लिए नमामि गंगे योजना की शुरुआत की थी. पीएम मोदी ने गंगा सफाई को काम पहले उमा भारत को सौंपा लेकिन वो फेल हो गईं तो फिर अब ये काम नितिन गडकरी संभाल रहे हैं. लेकिन विश्व बैंत और केंद्रीय जल आयोग की आंकलन रिपोर्ट में जो खुलासा हुआ है वो हैरान परेशान करने वाला है.
द हिन्दू में छपी ख़बर के मुताबिक ये रिपोर्ट कहती है कि 2040 तक गंगा नदी बेसिन में तीन गुना ज्यादा फसल खराबी और पीने के पानी की समस्या होगी. कुछ राज्यों में ये संख्या 39 फीसदी तक बढ़ सकती है. रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि अगर सरकारें इस ओर ध्यान नहीं देती हैं तो उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार में 2040 तक 28%, 10%, 10% और 15% सिंचाई के पानी की कमी हो सकती है.
सिर्फ सिंचाई ही नहीं बल्कि पीने के पानी की किल्लत भी होगी. मध्यप्रदेश में 39%, दिल्ली में 22% और उत्तर प्रदेश में पीने के पानी में 25% की कमी हो सकती है. गंगा नदी बेसिन भारत की एक तिहाई जमीन को सींचता है यानी राष्ट्रीय जल उपयोग का 90% यहीं से आता है. ये रिपोर्ट मॉडलिंग अध्ययन पर आधारित है. इसे तैयार करने के लिए अलग अलग राज्यों में गंगा नदी के प्रभाव, पानी की गुणवत्ता, और भूजल स्तर का अध्ययन किया गया है.
ये
रिपोर्ट ऐसे वक्त में आई है जब जानकारों ने गंगा नदी को लेकर चिंता जाहिर की है और
वो समयसीमा भी पूरी हो रही है जिसमें केंद्र सरकार ने कहा था कि मार्च 2019 तक
गंगा में प्रदूषण 70% तक कम कर दिया जाएगा. गंगा नदी बेसिन दुनिया
में सबसे ज्यादा आबादी वाला बेसिन माना जाता है. ये देश की आधी आबादी का घर है और
इसमें देश के दो तिहाई गरीब लोग रहते हैं.
जानकारों का कहना है कि गंगा नदी को प्रदूषण मुक्त करने के लिए सीवेज प्लांट पर रोक लगाने की बजाय इसपर ध्यान दिया जाए कि इसका प्रभाव खत्म न हो. गंगा नदी को लेकर दिल्ली में पर्यावरणविदों ने एक आंदोलन की शुरुआत भी की है. हरिद्वार में भी गंगा नदी को बचाने के लिए भूख हड़ताल हो रही है. मातृ सदन के 26 साल के संत आत्माबोधानंद 24 अक्टूबर 2018 से आमरण अनशन पर हैं, प्रो. जीडी अग्रवाल ने गंगा के लिए गंगा के लिए प्राण त्याग दिए हैं.
पूरे देश में गंगा नदी को बचाने के लिए आंदोलन और अनशन हो रहे हैं लेकिन केंद्र सरकार ने इन आंदोलनकारियों से बातचीत करने में दिलचस्पी नहीं दिखाई. ये लोग गंगा कानून बाने की मांग कर रहे हैं और सरकार को रोज चिट्ठी लिख रहे हैं. लेकिन सरकार गंगा नदी को न्यूनतम प्रवाह बना पाने में भी कामयाब नहीं हो पाया है.