सपा संरक्षण और सपा मुखिया अखिलेश यादव के पिता मुलायम सिंह यादव ने सपा-बसपा गठबंधन को लेकर कहा है कि सपा को गठबंधन की जरूरत नहीं थी गठबंधन से पार्टी की सीटें आधी हो गई हैं. तो क्या ये माना जाए कि वाकई में इससे सपा को नुकसान होगा. ये समझने के लिए आपको मायावती के गणित को समझना पड़ेगा.
सीटों के बंटवारे में सपा को जो 37 सीटें मिली हैं उनमें से 5 सीटें ऐसी हैं जिनपर 2014 के लोकसभा चुनाव में दूसरे नंबर पर थी. कुशीनगर, सहारनपुर, गाजियाबाद, बाराबंकी, कानपुर और लखनऊ. इन सीटों पर 2019 में सपा लड़ेगी. गठबंधन में जो सीटें बसपा को मिली हैं उन पर मायावती ने ये ध्यान रखा है कि वहां उनका गढ़ हो और संगठन मजबूत हो. लेकिन अखिलेश के लिए मुकाबला चुनौतीपूर्ण हो गया है.
अखिलेश के खाते में जो पांच सीटें आईं हैं उनपर प्रियंका गांधी का असर भी होगा. लिहाजा खबर ये आ रही है कि इन सीटों पर कांग्रेस और सपा ‘म्यूचुअल अंडरस्टैंडिंग’ के आधार पर चुनाव लड़ेगी क्योंकि यहां अल्पसंख्यक वोट का बिखराव न हो. अखिलेश के लिए मुश्किल ये भी है कि कांग्रेस अपना दल, ओम प्रकाश राजभर की सुभासपा, शिवपाल यादव की प्रसपा, राजा भैया की जनसत्ता दल, निषाद पार्टी, पीस पार्टी जैसे दलों के साथ मिलकर लड़ सकती है.
समाजवादी पार्टी की 37 सीटें: गोरखपुर, कुशीनगर, आजमगढ़, बलिया, चंदौली, वाराणसी, मिर्जापुर, कैराना, मुरादाबाद, रामपुर, संभल, गाजियाबाद, हाथरस, फिरोज़ाबाद, मैनपुरी, एटा, बदायूं, बरेली, पीलीभीत, खीरी, हरदोई, उन्नाव, लखनऊ, इटावा, कन्नौज, कानपुर, झांसी, बांदा, कौशाम्बी, फूलपुर, इलाहाबाद, बाराबंकी, फ़ैजाबाद, बहराइच, गोंडा, महाराजगंज और राबर्ट्सगंज सीट से सपा चुनाव लड़ेगी. वहीं मुज़्ज़फरनगर, बागपत व मथुरा में आरएलडी चुनाव लड़ेगी.
बहुजन समाज पार्टी की 38 सीटें: सीतापुर, मिश्रिख मोहनलालगंज, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, फर्रुखाबाद, अकबरपुर, जालौन, हमीरपुर, फतेहपुर, सहारनपुर, बिजनौर, नगीना, अमरोहा, मेरठ, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़, आगरा, फतेहपुर सीकरी, आंवला, शाहजहांपुर, धौरहरा, अम्बेडकरनगर, कैसरगंज, श्रावस्ती, डुमरियागंज, बस्ती, संत कबीरनगर, देवरिया, बांसगांव, लालगंज, घोसी, सलेमपुर, जौनपुर, मछलीशहर, गाजीपुर, भदोही.
सीटों के बंटवारे में 17 आरक्षित सीटों में से 10 बसपा के खाते में गईं हैं और 7 सीटें सपा के खाते में आईं हैं. सीटों के बंटवारे में ऐसा लगता है कि मायावती की चली है और उन्होंने वहीं सीटें अपने पास रखी हैं जहां पर उनका संगठन मजबूत है और उनके माफिक जातीय समीकरण बन रहे हैं. वहीं अखिलेश यादव को वो सीटें मिली हैं जहां पर उन्हें कांग्रेस और बीजेपी से सीधा मुकाबले करना पड़ रहा है.