पुलवामा आतंकी हमले के बाद देश में सियासी तौर पर क्या परिवर्तन हुआ है ये समझना जरूरी हो गया है. क्योंकि एक तरफ जहां बीजेपी पूरे रंग में दिखाई दे रही है वहीं कांग्रेस और तमाम विपक्षी दल पूरे तरह से चुप हैं. सकते में हैं और इस डर में हैं कि कहीं उनकी कोई बात या गतिविधि बीजेपी को मौका न दे दे.
पुलवामा हमले के बाद BJP की सियासी सक्रियता
14 फरवरी के बाद: तमिलनाडु में बीजेपी और एआईडीएमके के गठबंधन का ऐलान हो गया, बीजेपी-शिवसेना ने लंबी तनातनी और रूठने-मनाने के खेल के बाद, गठबंधन में चुनाव लड़ने का ऐलान किया गया, इस दोनों गठबंधन के बाद अमित शाह और पीयूष गोयल की सक्रियता दिखाई दी और दोनों की हंसते हुए फोटो मीडिया में आईं. अमित शाह ने असम में रैली की और कहा कि, बीजेपी सरकार बदला लेगी ये यूपीए सरकार नहीं है.
पीएम मोदी ने 14 फरवरी को पुलवामा में आतंकी हमला होने के बाद झांसी, महाराष्ट्र में धुले और बिहार के बरौनी में जनसभाएं कीं. ‘वंदे भारत’ समेत तमाम परियोजनाओं का उदघाटन और शिलान्यास किया. पीएम मोदी ही नहीं यूपी के सीएम योगी ने भी ओड़िसा के पिछड़े ज़िले कालाहांडी में पहुंच गए क्योंकि वहां भी चुनाव का माहौल गर्म है.
14 फरवरी की ही शाम को ही दिल्ली बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी प्रयागराज में BJP का प्रचार कर रहे थे और एक सांस्कृति कार्यक्रम में हिस्सा ले रहे थे. बीजेपी के दूसरे नेता, सांसद, और मंत्री भी शहीदों की शोक सभा में शामिल हुए तो साक्षी महाराज का हंसता हुआ फोटो सामने आया, एक मंत्री जूते पहनकर शोक सभा में पहुंच गए. जिससे उन्हें आलोचनाओं का सामना करना पड़ा.
आतंकी हमले के बाद विपक्ष दिखा बेबस
पुलवामा हमले के बाद बीजेपी के सभी स्टार प्रचारक अपने काम में लगे हुए थे और हमले में हुई शाहदत का जिक्र करके दहाड़ रहे थे. तो वहीं ममता बनर्जी को छोड़कर प्रियंका, राहुल, अखिलेश, मायावती, तेजस्वी जैसे तमाम नेता चुपचाप बैठे रहे. 11 फरवरी को कांग्रेस की पूर्वी उत्तर प्रदेश प्रभारी प्रियंका गांधी के रोड शो के बाद उत्साह से भरी कांग्रेस खामोश हो गई और राफेल का मुद्दा हवा में उड़ गया. प्रियंका ने अपनी प्रेस कॉन्फ़्रेंस ये कहते हुए रद्द कर दी कि ‘ऐसे मौक़े पर राजनीति की बात करना ठीक नहीं है.’
हमले में पूरा विपक्ष सदमें में डूबा रहा लेकिन बीजेपी नेताओं का जोश पूरे उफान पर दिखा. विपक्ष सिर्फ इतना भर कह पाया कि वो सरकार के साथ है. उल्टा कांग्रेस को नवजोत सिंह सिद्धू के बयान के बाद बचाव की मुद्रा में आना पड़ा. राहुल गांधी ने पुलवामा हमले के बाद इक्का दूक्का कार्यक्रम किए. उन्होंने छत्तीसगढ़ में एक जनसभा की और बीजेपी छोड़कर आए कीर्ति आज़ाद का पार्टी में शामिल कराया. प्रियंका गांधी ने पुलवामा हमले के बाद सिर्फ प्रतिक्रिया दी और कोई कार्यक्रम नहीं किया.
अब विपक्ष क्या करेगा?
कुल मिलाकर ये कहा जा रहा है कि विपक्षी खेमे में खामोशी है और बीजेपी ने बड़ी शान से दक्षिण भारत में एक अहम पार्टी से गठबंधन कर लिया है. महाराष्ट्र में अपने पुराने साथी को मना लिया है और पुलवामा आतंकी हमले को लेकर विपक्ष को ही घेर लिया है. हालात देखकर ये कतई नहीं लगता कि पुलवामा का मुद्दा राजनीतिक मंचों पर नहीं छेड़ा जाएगा और पीएम मोदी पाकिस्तान का छठी का दूध याद दिलाने वाले भाषण नहीं देंगे. अब सोचना विपक्ष को है कि वो कैसे बीजेपी के इन आक्रामक तेवरों को संभालता है क्योंकि अगर विपक्ष के किसी नेता ने कुछ भी बोला तो बीजेपी उसे राष्ट्रवाद, देशभक्ति और शहीदों की शहादत से जोड़कर ऐसी तैसी करने से नहीं चूकेगी.