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शहीद मेजर चित्रेश बिष्ट: 28 फरवरी को घर आना था, 7 मार्च को शादी थी, 17 फरवरी को अर्थी आई

शहनाई का इंतजार मातम की दर्दनाक ध्वनि में बदल गया…जो लोग शादी में शरीक होने वाले थे वो अंतिम यात्रा में शरीक हो रहे थे और चारों तरफ था सिर्फ चीत्कार. नब्ज़ जम गई है…शरीर सुन्न पड़ गया है और कलेजा कांप रहा है…देश एक और शहादत पर रो रहा है…देहरादून में किसी देह को चैन नहीं है क्योंकि यहां से गुजरी शहीद चित्रेश की अंतिम यात्रा को देखने के बाद लोग सदमें में हैं.

चित्रेश आईईडी बम को डिफ्यूज करने की कोशिश में मेजर चित्रेश सिंह जम्मू कश्मीर के राजौरी जिले में नियंत्रण रेखा के पास शहीद हुए थे. सात मार्च को शहनाई बजनी थी चित्रेश के घर में लेकिन चीत्कार है. दिल को चीर देने के वाला चीत्कार.

शादी की तैयारी में जुटे पिता का शरीर कांप जाता है अपने सपूत की शहादत को सोचकर…सिर्फ  31 साल की उम्र चित्रेश देश के लिए कुर्बान हो गए…28 फरवरी को घर आना था अपनी दुल्हन को ब्याहने के लिए…क्या पता था कि घर में उनकी अर्थी आएगी…घर में परिजनों के करुण क्रंदन से कान फट रहे हैं पिता जो सेवानिवृत्त पुलिस निरीक्षक हैं उनके मुंह में लफ्ज जम से गए हैं.

शादी के कार्ड बांटने में व्यस्त पिता अब लोगों को शोक संदेश दे रहे हैं…लोगों की जुबान पर कहानियां हैं चित्रेश की….उनकी बहादुरी कि और कुमाऊं जिले के पीपली गांव की जहां जब चित्रेश जाते थे तो वहीं के हो जाते थे…देश ने इंजीनियरिंग कॉर्प्स का बहादुर और ईमानदार अधिकारी खो दिया है…देश इस परिवार को सांत्वना देगा लेकिन परिवार का ये टाइगर अब कभी नहीं लौटेगा…देहरादून की नेहरू कॉलोनी से ये चित्रेश का आखिरी सफर था.

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