बिहार की राजनीति में 2014 के बाद काफी उथल-पुथल हुई है. कई दल इधर से उधर हुए हैं. लालू-नीतीश अलग हुए हैं, उपेंद्र कुशवाह एनडीए से यूपीए में पहुंच गए हैं, लालू यादव जेल में हैं और तेजस्वी यादव बिहार में नए समीकरण बनाने में लगे हुए हैं. PM मोदी ने भी बिहार में चुनावी अभियान की शुरुआत करते हुए पुलवामा हमले का जिक्र किया और बिहार की राजनीति को साधने की कोशिश की.
NDA और महागठबंधन की राजनीति
इस बार चुनाव आसान नहीं रहने वाले हैं. आरजेडी ने तेजस्वी यादव बिहार में ‘बेरोजगारी हटाओ, आरक्षण बढ़ाओ’ अभियान चला रहे हैं. बीजेपी ने बीजेपी ने पीएम मोदी के दौरे से पहले 15 फरवरी को पटना में ‘ओबीसी मोर्चा’ की दो दिन की सभा का तय किया था लेकिन आतंकी हमले के चलते सभा नहीं हो पाई. बिहार में बीजेपी एनडीए के बाकी दलों के साथ पिछड़ों को अपने पक्ष में लाने की कोशिश कर रही है वहीं आरजेडी महागठबंधन के दलों के साथ पिछड़ों को निशाने पर लिए है.
‘बेरोजगारी हटाओ, आरक्षण बढ़ाओ’
ओबीसी वर्ग को लुभाने के लिए पीएम मोदी ने कई दांव चले हैं. उन्होंने कोशिश की है कि यूपी-बिहार जहां जातिगत राजनीति अहम है वहां ओबीसी को साधा जाए. बीजेपी सरकार ने जब से आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लोगों के लिए 10% आरक्षण दिया है तभी से तेजस्वी यादव कह रहे हैं कि ओबीसी का कोटा बढ़ाया जाए. इसके लिए उन्होंने ‘बेरोजगारी हटाओ, आरक्षण बढ़ाओ’ अभियान शुरु किया है.
मंडल राजनीति का दांव
आरजेडी 1990 की मंडल राजनीति पर दांव खेल रही है औऱ मांग कर रही है कि आबादी से हिसाब से आरक्षण दिया जाए. वो ये भी मांग कर रहे हैं कि निजी क्षेत्रों के अलावा एससी/एसटी, ओबीसी, ईबीसी को उनकी संबंधित जाति में संख्या के हिसाब से आरक्षण दिया जाए. आरजेडी की कोशिश है कि वो इस मांग से अति पिछड़ों को अपने पाले में खींच लाएं.
सवर्ण v/s पिछड़ा
जब से मोदी ने 10 % आरक्षण का दांव खेला है तभी से बिहार की बाकी पार्टियां लगातार इस कोशिश में लगी हुई हैं कि बीजेपी को ऊंची जातियों की पार्टी साबित करते बाकी जातियों का वोट हासिल किया जाए. चुंकि बिहार में सामान्य वर्ग की आबादी से हिसाब से ईबीसी और ओबीसी की आबादी ज्यादा है और आरजेडी ये कोशिश कर रही है कि लोकसभा चुनान को सवर्ण v/s पिछड़ा कर दें.
नीतीश और बीजेपी की तैयारी
बीजेपी भी ये बात जानती है और यही कारण है कि वो ओबीसी मोर्चा के सम्मेलन के जरिए इस वर्ग के मतदाओं को अपने पाले में खींचना चाहती है. हालांकि बीजेपी नेता सुशील कुमार मोदी इस बात इंकार करते हैं. वहीं दूसरी तरफ जेडीयू ने तो पहले ही बिहार में राज्य में अपने ‘अति पिछड़ा प्रकोष्ठ’ का जिलास्तरीय सम्मेलन आयोजित कर पिछड़े वर्ग के मतदाताओं से जुड़ने की कोशिश की है. ये भी कहा जा रहा है नीतीश पिछले चुनावों में इस कोशिश में कामयाब भी रहे हैं
बिहार में ओबीसी वोटबैंक निर्णायक है और यही कारण है कि ये जिसके खाते में जाएगा वो चुनाव में मजबूत होगा. अब देखना ये है कि मोदी का दौरा और तेजस्वी का अभियान कितना रंग लाता है.