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Jammu Kashmir: क्या है सिंधु जल संधि, जिसे तोड़ने की मांग उठ रही है

जम्मू कश्मीर में हालात तनावपूर्ण हैं. पुलवामा आतंकी हमले के बाद पूरा देश एक सुर में पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की मांग रहा है. कहा जा रहा है कि भारत को पाकिस्तान के साथ सभी ताल्लुक खत्म कर देने चाहिए. सिंधु जल संधि भी खत्म कर देनी चाहिए. लेकिन भारत के लिए ये संधि तोड़ना आसान होगा. और अगर ये संधि टूटती है तो पाकिस्तान पर क्या फर्क पड़ेगा?

सिंधु जल संधि क्या है ?

सिंधु जल संधि को लेकर दोनों देशों को बीच कई बात खींचतान हुई है. 1951 में तत्कालीन पीएम जवाहरलाल नेहरू ने टेनसी वैली अथॉरिटी के पूर्व प्रमुख डेविड लिलियंथल को भारत बुलाकर इस मसले पर बात की थी और लिलियंथल अपनी इस यात्रा में पाकिस्तान भी गए थे. इसके बाद जब वो वापस अमेरिका लौटे तो उन्होंने सिंधु नदी घाटी के बंटवारे पर एक आर्टिकल लिया था. कहा जाता है कि इस आर्टिकल को पढ़कर तत्कालीन विश्व बैंक प्रमुख डेविड ब्लैक ने भारत और पाकिस्तान के प्रमुखों से संपर्क किया और दोनों पक्षों में बातचीत का सिलसिला दोबारा शुरु हो गया. करीब एक दशक लंबे बैठकों के दौर के बाद 19 सितंबर 1960 को कराची में सिंधु नदी घाटी समझौते पर हस्ताक्षर हुए.

भारत-पाक के बीच हुए समझौते में क्या है?

यहां एक बात और आपको जान लेनी चाहिए कि समझौते में ये भी तय किया गया कि इस संधि को को कोई एक देश अपने मन से न बदल सकता है और न तोड़ सकता है. भारत-पाकिस्तान को साथ मिलकर ही इस संधि में बदलाव करना होगा या एक नया समझौता बनाना होगा. लेकिन यहां भारत के पक्ष में एक बात ये जाती है कि भारत वियना समझौते के लॉ ऑफ़ ट्रीटीज़ की धारा 62 के अंतर्गत इस संधि से ये कहते हुए पीछे हट सकता है कि पाकिस्तान आतंकवादी संगठनों की मदद कर रहा है.

तो अगर भारत ये संधि तोड़ता है तो पाकिस्तान सबसे पहले विश्व बैंक के पास जाएगा क्योंकि सिंधु घाटी से गुजरने वाली नदियों पर नियंत्रण को लेकर उपजे विवाद की मध्यस्थता विश्व बैंक ने की थी. भारत को फिर विश्व बैंक को जवाब देना होगा और कूटनीति के हिसाब से ये भारत के लिए अच्छा नहीं होगा. तो ये आसान तो नहीं है कि भारत इस संधि तो आसानी से तोड़ ले. क्योंकि इसमें भारत की जवाबदेही बढ़ जाएगी.

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