प्रियंका गांधी का महासचिव बनने के बाद पहला दौरा खत्म हो चुका है और पहले दौरे में उन्होंने जो डील लॉक की है वो विरोधियों के लिए मुश्किल खड़ी कर सकती है. प्रियंका ने पहली डील की है महान दल से इस दल ने आंवला और मैनपुरी से अपने उम्मीदवार मैदान में उतारे था. और इसे आवंला में 56,233 वोट मिले थे. यहां बीजेपी जीती थी और दूसरे नंबर पर सपा थी. सपा यहां से 7,861 वोटों से हारी थी. यानी महान दल न होता तो सपा जीत जाती.
अब ये वोटकटवा पार्टी कांग्रेस के साथ लड़ेगी. 2008 से अस्तित्व में आने वाला महान दल अभी तक एक भी चुनाव नहीं जीता है लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश की करीब एक दर्जन सीटों की गैर-ओबीसी जातियों पर इसका अच्छा-खासा प्रभाव है. सपा-बसपा के गठबंधन के बाद प्रियंका महान दल के मतदाताओं को भुनाना चाहती हैं. गैर- यादव ओबीसी जातियों के समर्थन से ही बीजेपी को यूपी में 2014 लोकसभा और 2017 विधानसभा चुनाव में जीत मिली थी.
महान दल के मुखिया केशव देव मौर्य हैं, केशव सपा और बसपा से भी जुड़े रहे हैं. 2004 में उन्होंने अपना दल के टिकट से जौनपुर से लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए, 2009 में महान दल ने कांग्रेस के साथ मिलकर अपना पहला लोकसभा चुनाव लड़ा. महान दल ने आंवला और मैनपुरी से अपने उम्मीदवार मैदान में उतारे थे.
2012 में महान दल ने यूपी में 74 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे और उन्हें कुल 0.90 प्रतिशत वोट मिले थे. 2014 के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने आरएलडी को 8 और महान दल को 3 सीटें दी थीं. महान दल एटा, नगीना और बदायूं से लडा था, और सभी सीटों पर मिलाकर उसे 22,774 वोट मिले थे. कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है महान दल एक वोट कटवा पार्टी है और इसका फायदा प्रियंका किस रूप में लेना चाहती हैं इसको समझना होगा.