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प्रियंका जिस पूर्वी UP की प्रभारी हैं, वहां इस बार BJP क्या करने वाली है ?

चुनावी मैदान में मोर्चेबंदी शुरू हो गई है. कौन किस खेमे में है इसको लेकर खेमेबंदी हो रही है. नए साथियों की तलाश हो रही है और पुराने साथियों को साधा जा रहा है. तो ऐसे में लाख टके का सवाल ये है कि कौन किस खेमे  में जा सकता है. और कहां किसको कितना फायदा हो सकता है.

80 लोकसभा सीटों वाले सूबे में जो जीतेगा वही देश का सिकंदर बनेगा ये बात सियासी जमात अच्छी तरह जानती है और यही कारण है कि मोदी- शाह- योगी, राहुल- प्रियंका, माया – अखिलेश और अनुप्रिया-राजभर,  सभी अपने अपने गुणा गणित में लगे हैं.

करो या मरो वाला चुनाव

2019, हिन्दुस्तान की सियासत में कईयों के लिए करो या मरो वाला साल है…फिर चांहे वो अखिलेश हों जो पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने और विधानसभा चुनाव में हारने के बाद लोकसभा चुनावों में अपना रसूख बढ़ाना चाहते हैं, मायावती के पास तो चुनावों के बाद कुछ बचा ही नहीं है सो वो अगर कुछ नहीं कर पाईं तो राजनीति में उनका हाशिए पर जाना तय है, राहुल और प्रियंका गांधी के लिए यूपी में अपनी जमीन तलाशने का ये आखिरी मौका है क्योंकि 2014 में 21 से 2 सीट पर आ गई कांग्रेस के पास खोने के लिए कुछ बचा नहीं है और बीजेपी के लिए अपनी जमीन को बचाए रखने की चुनौती है.

जातियां तय करेगी जीत-हार

चुनाव में जातियों की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है और जातियों के आधार पर कौन कितना मजबूत है. यही बात तय करेगी कि लोकसभा में किसका कैसा प्रदर्शन रहेगा. 2014 में बीजेपी ने सोशल इंजीनियरिंग के दम पर सभी दलों के समीकरण धराशाई करके 80 सीटों वाला सूबे में सहयोगियों को मिलाकर 73 सीटें जीती थी. इस बार ऐसा हो पाएगा ये कहना मुश्किल हैं क्योंकि जातीय गणित बदल चुका है. एक तो गठबंधन और दूसरा बीजेपी के वो सहयोगी जो 2014 और 2017 में उसके साथ थे अब उन्हें आंख दिखा रहे हैं.

यूपी में सहयोगियों की नाराजगी

सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने भाजपा नेतृत्व को सभी मुद्दों पर 24 फरवरी से पहले बात कर सुलझाने का अल्टीमेटम दिया है, अपना दल (एस.) ने 20 फरवरी की तारीख तय कर दी है. सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी 24 फरवरी को वाराणसी में रैली करेगी और यहां कोई बड़ा एलान कर सकती है. उधर, अपना दल (एस) की संरक्षक और केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्यमंत्री अनुप्रिया पटेल ने भी ऐलान कर दिया है कि अगर भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व 20 फरवरी तक समस्या का निराकरण नहीं करता है तो आगे की रणनीति बनाने के लिए अपना दल (एस) आजाद है…अनुप्रिया ने साफ बिना लागलपेट के कहा कि कार्यकर्ताओं के सम्मान से किसी भी कीमत पर समझौता नहीं किया जाएगा.

क्या हैं अपना दल (एस) की मांग ?

साभार-गूगल
  1. बिहार की तर्ज पर यूपी में संविदा और आउट सोर्सिंग में आरक्षण लागू हो
  2. उत्तर प्रदेश में भी बिहार की तरह निजी क्षेत्र की भर्तियों में आरक्षण लागू हो
  3. OBC और अनुसूचित जाति-जनजाति को आरक्षण देकर सम्मान दिया जाए
  4. जिलों में DM और SP में से किसी एक अधिकारी की नियुक्ति आरक्षित वर्ग से हो
  5. हर जिले के 50 फीसदी थानों में आरक्षित वर्ग के थानेदारों की नियुक्ति हो

क्या हैं सुभासपा की मांग ?

  1. सामाजिक न्याय समिति की सिफारिशों को लागू करें
  2. सामाजिक न्याय समिति का गठन पिछले साल मई में किया गया था
  3. समिति ने पिछड़े वर्ग को तीन वर्ग में बांटने के लिए समिति बनाई
  4. पिछड़ा, अति पिछड़ा और सर्वाधिक पिछड़ा में OBC को बांटना था

बीजेपी की सोशल इंजीनियरिंग

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने गैर जाटव, गैर यादव और गैर अल्पसंख्यक समुदाय की सोशल इंजीनियरिंग के सभी दांव अपनाए हैं. तीन तलाक के मुद्दे पर अल्पसंख्य समाज की महिलाओं तक अपनी अपील पहुंचाई है…कोइरी, कुर्मी, सैनी, पासी, धोबी, राजभर, गड़ेरिया, नाई, केवट, मुशहर, निषाद(मल्लाह), कुशवाहा जैसी जातियों को बीजेपी जोड़ती रही है. लेकिन 2019 में बीजेपी की ये रणनीति बदलनी पड़ सकती है या झुकना पड़ सकता है. क्योंकि बीजेपी के तमाम सहयोगी या तो उससे अलग हो रहे हैं या फिर अल्टीमेटम दे चुके हैं. अपना दल और सुभासपा को बीजेपी के लिए साथ रखना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि ये दोनों दल पूर्वी यूपी में पकड़ रखते हैं. वही पूर्वी यूपी जहां की प्रभारी हैं प्रियंका गांधी.

पूर्वांचल में पटेल फैक्टर

मिर्जापुर और प्रतापगढ़ के अलावा सोनभद्र, कौशांबी, फूलपुर, प्रयागराज, संतकबीरनगर, बरेली, उन्नाव, जालौन, फतेहपुर और कानपुर तक में पटेल या कुर्मी  मतदाता अहम है अगर ये बीजेपी से छिटका तो ये सीटें खटाई में पड़ जाएंगी.

राजभर फैक्टर कितना नुकसान करेगा?

https://www.youtube.com/watch?v=xyVBj8M6uBs&t=4s

ये आंकड़े हैं जो बीजेपी को मजबूर करते हैं कि वो राजभर और अनुप्रिया को साधने के लिए मजबूर करते हैं. क्योंकि अखिलेश-मायावती-अजीत सिंह के साथ आने के बाद बीजेपी के लिए अपने सहयोगियों को साथ रहकर पिछले प्रदर्शन को दोहराने की चुनौती बड़ी हो गई है.

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