मोदी सरकार अपने जिस फैसले को एतिहासिक करार दे रही है उस फैसले के विरोध में पूर्वोत्तर के ज्यादातर दल और लोग खिलाफ हैं. नागरिकता संशोधन विधेयक के खिलाफ अब बीजेपी के मुख्यमंत्री भी खुल कर सामना आ गए हैं. जिस विधेयक के पक्ष में पीएम मोदी ने कई बार अपनी रैलियों में जिक्र किया है वहीं बिल उनकी पूर्वोत्तर में सबसे बड़ी मुश्किल बन सकता है.
पीटीआई से हवाले से ख़बर है कि मोदी सरकार के इस महत्वाकांक्षी बिल को लेकर पूर्वोत्तर के दो और राज्यों को मुख्यमंत्रियों ने विरोध शुरू कर दिया है. अरुणाचल प्रदेश के पेमा खांडू और मणिपुर के एन बीरेन सिंह ने सोमवार को इस विवादास्पद विधेयक के विरोध में अपनी आवाज उठाई.
दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने गृह मंत्री राजनाथ सिंह से कहा है कि राज्यसभा में इस विधेयक को पारित न कराया जाए. दोनों राज्यों ने करीब 30 मिनट तक गृहमंत्री के साथ बैठक की और उन्हें पूर्वोत्तर के हालातों से रूबरू कराया है. दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने कहा है कि जब तक लोग इस बिल पर सहमत नहीं हो जाते तब तक ये बिल पारित न कराया जाए.
ख़बर ये भी कि गृहमंत्री ने दोनों मुख्यमंत्रियों को आश्वासन दिया है कि सरकार पूर्वोत्तर के लोगों के अधिकारों को कमजोर नहीं होने देगी.
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क्या है नागरिकता संशोधन विधेयक में?
अगर ये विधेयक कानून बन जाता है तो अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म को मानने वाले अल्पसंख्यक समुदाए के लोगों को 12 साल की बजाय सिर्फ 6 साल भारत में रहने और बिना किसी दस्तावेज के ही भारतीय नागरिकता मिल जाएगी. संसद के शीतकालीन सत्र में इस बिल को लोकसभा में पास करा लिया गया है.