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राजस्थान में गुर्जर आरक्षण क्या सचिन पायलट की मुश्किलें बढ़ाएगा ?

केंद्र सरकार ने सामान्य वर्ग के गरीबों को 10 फीसदी आरक्षण दिया तो गुर्जर और दूसरी जातियां फिर से आरक्षण के लिए आंदोलन पर आमादा हो गईं हैं. आरक्षण की मांग को लेकर राजस्थान में गुर्जरों भी से आंदोलनरत हैं. राजस्थान में गुर्जरों का आंदोलन पहली बार नहीं हो रहा है. 2007, 2008, 2009, 2010 और 2015 में गुर्जर उग्र आंदोलन कर चुके हैं.

कुछ आंदोलन तो ऐसे भी हुए हैं जिनमें करीब 70 लोगों की मौत भी हो गई थी. लेकिन इन आंदोलनों का फायदा गुर्जरों को नहीं हुआ. कांग्रेस और बीजेपी की सरकारों ने गुर्जरों को सिर्फ आश्वासन दिया है. इस बार फिर से गुर्जर आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे हैं और उनका कहना है कि वो मांगों को मनवाए बिना आंदोलन नहीं खत्म करेंगे. गुर्जरों से बातचीत करने के लिए राजस्थान की सरकार ने 3 सदस्यों की समिति बनाई थी. ये समिति आंदोलन का नेतृत्व कर रहे किरोड़ी सिंह बैंसला से मिलने पहुंचे लेकिन गुर्जरों ने रेल की पटरियां छोड़ने से मना कर दिया.

सचिन पायलट की परेशानी

गुर्जरों का ये आंदोलन सबसे ज्यादा सचिन पायलट के लिए मुश्किल बन सकता है. वो राजस्थान के उप मुख्यमंत्री हैं और गुर्जर समुदाय से आते हैं. अभी दो महीने पहले कांग्रेस ने राजस्थान में सत्ता हासिल की है और दो महीने बाद उसे लोकसभा चुनाव में उतरना है. ऐसे में पायलट अपने समुदाय की नाराजगी मोल नहीं ले सकते. सचिन पायलट की मुश्किल ये है कि अगर वो अपने समुदाय की तरफ जाते हैं तो बाकी वर्ग नाखुश हो सकते हैं और अगन नहीं जाते तो उनकी अपनी बिरादरी नाराज हो सकती है.

जिस बात का फायदा विधानसभा चुनाव में पायलट को मिला वही बात उनके खिलाफ भी जा सकती है. सचिन पायलट की दावेदारी के बाद गुर्जर समुदाय ने अचानक अपना दबदबा बढ़ाया है. विधानसभा चुनाव में गुर्जरों ने पायलट को सीएम बनवाने के लिए सड़कों पर प्रदर्शन किए और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को भी निशाने पर लिया. इसका खामियाजा पायलट को भुगतना पड़ा और सीएम पद के लिए उनकी दावेदारी कमजोर पड़ गई. बाद में पायलट ने समर्थकों से अपील की कि वो शांति बनाए रखें.

अब जब लोकसभा चुनाव से पहले राजस्थान में गुर्जर आरक्षण के लिए आंदोलन कर रहे हैं तो कांग्रेस का आलाकमान चाहेगा कि पायलट इस आंदोलन को खत्म कराएं. अभी हाल ही में एक प्रेस कॉन्फ्रैंस में गुर्जर आंदोलन पर पूछे गए सवाल पर सचिन पायलट की इशारा करते हुए कहा था कि वो इस सवाल का जवाब देंगे. हालांकि कहा ये भी जा रहा है कि गुर्जरों का बड़ा तबका नहीं चाहता कि पायलट को नुकसान हो इसलिए वो इस आंदोलन में शामिल नहीं हो रहा है.

बैंसला की राजनीतिक महत्वाकांक्षा

गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति के एक संस्थापक सदस्य हिम्मत सिंह गुर्जर का कहना है कि इस बार का आंदोलन कर्नल बैंसला ने अपने फायदे के लिए खड़ा किया है. इस आंदोलन से पायलट को नुकसान हो सकता है क्योंकि लोकसभा चुनाव में कुछ ही वक्त बाकी है और ऐसे में दूसरे वर्गों में पायलट की छवि खराब हो सकती है. रही बात बैंसला की तो उनके बारे में कहा जा रहा है कि 2009 में बैंसला बीजेपी के टिकट पर हार चुके हैं. इस बार विधानसभा चुनाव में बैंसला अपने बेटे विजय सिंह बैंसला को टिकट दिलवाना चाहते थे लेकिन ऐसा नहीं हुआ. अब एक बार फिर से वो अपने बेटे के लिए जमीन तैयार कर रहे हैं. कुल मिलाकर ये है कि पायलट के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं लेकिन केंद्र की सरकार ने आरक्षण का जो गेम खेला है उससे मोदी की मुश्किलें भी बड़ेंगी.

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