कांग्रेस मुखिया राहुल गांधी पटना के गांधी मैदान में तीन दशक बाद रैली के लिए जाते हैं तो कांग्रेसी पोस्टर में उन्हें राम रूप में दिखाते हैं. राहुल गांधी भोपाल जाते हैं तो वहां भी कांग्रेसी जो पोस्टर बैनर लगाते हैं उसमें राहुल को राम अवतार में दिखाया जाता है. वहीं दूसरी तरफ बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह यूपी में बूथ अध्यक्षों के सम्मेलन को संबोधित करते हैं तो राम मंदिर निर्माण का मुद्दा छेड़ते हुए कांग्रेस को मंदिर निर्माण न होने के लिए दोषी ठहराते हैं.
यूपी में लोकसभा की 80 लोकसभा सीटें हैं. 2014 में बीजेपी ने यहां 71 सीटें जीती थीं. 2 सीटें बीजेपी सहयोगी अपना दल ने जीतीं, 5 सीटें सपा ने जीतीं और 2 सीटों पर कांग्रेस सिमट गई थी. बसपा का तो खाता भी नहीं खुला था. इन चुनावों में सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस का हुआ था. सपा भी वही सीटें बचा पाई जहां से मुलायम सिंह परिवार के प्रत्याशी मैदान में थे.
बीजेपी ने इन चुनावों में राम मंदिर का मुद्दा जोर शोर से उठाया था और हिंदुओं से वादा किया था कि अगर वो सत्ता में आई तो मंदिर निर्माण होगा. पांच साल बीत जाने के बाद भी मामला वहीं पर है जहां पर पहले था. हां इतना जरूर हुआ कि जैसे जैसे चुनाव करीब आए राम मंदिर निर्माण को लेकर बीजेपी और बीजेपी समर्थित दलों ने सक्रियता दिखाई देने लगी. अमित शाह और पीएम मोदी ने भी इस मुद्दे को कई बार छेड़ा.
वीएचपी जो मंदिर निर्माण को लेकर काफी सक्रिय रही वो अब चार महीने के लिए चुप हो गई है ये कहते हुए कि इससे चुनाव प्रभावित होंगे. लेकिन इसके पीछे रणनीति ये है कि बीजेपी 2019 के लोकसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत से शायद सरकार न बना पाए लिहाजा उसे उसे दूसरे दलों के समर्थन की जरूरत पड़ेगी और इसके लिए ये जरूरी है कि वो धर्म निरपेक्ष दिखाई दे. लिहाजा इस मुद्दे को टाल दिया गया.
बीजेपी जानती है कि राहुल गांधी कितना भी मंदिर को मुद्दा बनाए वो इससे फायदा नहीं ले पाएंगे, सपा-बसपा का भी यही हाल है तो फिर अगर चुनाव में राम मंदिर निर्माण का मुद्दा नहीं होता है तो इसका फायदा किसे होगा. ये प्रश्न अहम हो चला है. क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो यूपी में 80 लोकसभा सीटों के समीकरण पर जातियां का फैक्टर हावी हो जाएगा. यानी जो जातियों को जितना जोड़ेगा फायदा उसी को होगा.
अब राम मंदिर के मुद्दे पर अगर जातियां हावी होती हैं तो इससा फायदा सीधा सीधा सपा-बसपा गठबंधन को होगा. यही बात बीजेपी को परेशान कर रही है. अगर राम मंदिर के मुद्दे पर प्रगति हुई होती तो कुछ यादव और बाकी हिंदू भी बीजेपी की तरफ चले जाते जो अब नहीं होगा. सपा-बसपा गठबंधन से जो जातिय गोलबंदी हुई है उसका फायदा मायावती और अखिलेश दोनों को है.
मायवती की पार्टी बसपा को 2014 में सीट भले ही न मिली हो लेकिन यूपी में 19.60% वोट मिले थे और समूचे देश में उनकी पार्टी को 12 फ़ीसदी वोट मिले. वोट पाने के लिहाज से वो देश की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी थी. इसको आप ऐसे समझ सकते हैं कि ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी को 34 सीटें मिली थीं लेकिन वो सिर्फ 3.84 फ़ीसदी ही मिले थे. लिहाजा जातीय आधार पर अगर चुनाव होंगे तो फायदा माया को होगा.
2004 में यूपी ने क्षेत्रीय पार्टी को बीजेपी और कांग्रेस पर तरजीह दी थी. तब सपा को लोगों का समर्थन मिला था. मुलायम सिंह यादव को उत्तर प्रदेश से 35 सीटें मिली थीं. तब उत्तर प्रदेश में बीजेपी को 10 और कांग्रेस को 9 सीटें मिली थीं. जबकि मायावती की बसपा को 19 लोकसभा सीटों पर जीत मिली थी. यानी राम मंदिर का मुद्दा सपा-बसपा को फायदा पहुंचा सकता है और अगर प्रियंका गांधी BDM तिगड़ी बना पाईं तो कांग्रेस फायदे में रहेगी.