मोदी सरकार के पांच साल पूरे होने को हैं और ऐसे में उनके कामकाज का आंकलन तेजी से किया जा रहा है. सबसे ज्यादा आंकलन रोजगार के मोर्चे पर हो रहा है. क्योंकि रोजगार के लिए बड़ी तादाद में युवाओं ने मोदी का समर्थन किया था. लेकिन हालिया रिपोर्ट इस बात की तस्दीक करती है कि मोदी सरकार में बेरोजगारी की दर सबसे ज्यादा है. रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि मोदी सरकार में मुसलमानों में बेरोजगारी की मार कम पड़ी हिन्दुओं पर ज्यादा.
बिजनस स्टैंडर्ड में छपी NSSO की रिपोर्ट में बताया गया कि 2011-12 की तुलना में 2017-18 में देश में बेरोजगारों की फौज बड़ी हो गई है. इस सर्वे में धर्म, जाति और लिंग के आधार पर विश्लेषण किया गया है. इस रिपोर्ट में बताया गया है कि बेरोजगारी की मार सबसे ज्यादा सिख और हिंदुओं पर पड़ी है. मुसलमानों इस पायदान में तीसरे नंबर पर हैं.
2017-18 में सिख समुदाय में बेरोजगारी 2 गुना (शहर) और 5 गुना (गांव) में बढ़ी, हिंदुओं में दो गुना (शहर) और तीन गुना (गांव) में बेरोजगारी की दर बढ़ी और तीसरे नंबर पर मुसलमान रहे जिनपर बेरोजगारी की मार हिन्दुओं के मुकाबले कम पड़ी. मुसलमानों में दो गुनी रफ्तार से बेरोजगारी बढ़ी है. ओबीसी पुरुषों के लिए भी रोजगार के बेहद कम मौके मुहैया हो पाए.
सर्वे में कहा गया है कि 2017-18 में मोदी सरकार रोजगार देने में नाकाम रही है. जिस तरह से मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने बेरोजगारी की समस्याओं को निपटारा किया, उतने कारगर ढंग से मोदी सरकार इस समस्या से निपटने में नाकाम रही है.