राफेल मामला: ‘डील में PMO ने किया था हस्तक्षेप’

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राफेल का मामला अभी दम तोड़ने वाला नहीं है. लगातार इसके जुड़े खुलासे हो रहे हैं. अब जो नया खुलासा हुआ है उसके मुताबिक पीएम मोदी को घेरने एक और मौका राहुल गांधी को मिल गया है.

राहुल गांधी लगातार पीएम मोदी पर आरोप लगा रहे हैं कि इस डील में अनिल अंबामी की कंपनी को 30 हजार करोड़ का फायदा पहुंचाया गया है. लिहाजा अब जब एक और खुलासा हुआ है तो उनके आरोपों को धार मिलेगी. यही कारण है कि खबर छपने के बाद उन्होंने कहा कि वाड्रा चिदंबरम की जांच कराइए लेकिन राफेल पर जवाब दीजिए.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक फ्रांस की कंपनी के साथ हो रही डिफेंस डील में प्रधानमंत्री कार्यालय यानी PMO ने रक्षा मंत्रालय के सुझावों को दरकिनार किया था. PMO ने इस डील के लिए “समानांतर बातचीत” का रास्ता अपनाया. यहां खबर ये भी है कि PMO के इस कदम का रक्षा मंत्रालय ने कड़ा विरोध भी किया था. रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर को पूरे मामले की जानकारी है.

इसके बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा,

‘वायुसेना के मेरे पायलट मित्रो, आप लोग समझ लो कि ये 30 हजार करोड़ रुपये आपके लिए इस्तेमाल हो सकते थे. उन्होंने (नरेंद्र मोदी) ये पैसे अनिल अंबानी को दे दिए. अब स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री ने इस देश से चोरी की है. मैं कड़े शब्द इस्तेमाल नहीं करता, लेकिन करने को विवश हो रहा हूं कि भारत के प्रधानमंत्री चोर हैं.’

अंग्रेजी अखबारद हिंदू’ में लिखे अपने लेख में वरिष्ठ पत्रकार N. राम ने दावा किया है कि,

7.87 बिलयन पाउंड के राफेल सौदे में रक्षा मंत्रालय का PMO द्वारा फ्रांस के साथ “समानांतर बातचीत” पर सख्त आपत्ति थी. PMO के इस कदम की वजह से ही सौदा काफी महंगा हो गया.

एन राम ने इससे पहले 24 नवंबर, 2015 को लिखी रक्षा मंत्रालय की एक चिट्ठी का हवाला देते हुए ये दावा किया है कि तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर को PMO के हस्तक्षेप के बारे में जानकारी दी गई थी. इस चिट्ठी में लिखा हुआ है,

 “हम पीएमओ को सुझाव दे सकते हैं कि जो भी अधिकारी भारतीय वर्ता समूह का हिस्सा नहीं है वह सौदे के संबंध में फ्रांस के अधिकारियों से बातचीत न करे। यदि किसी कारण से पीएमओ को इस सौदे में रक्षा मंत्रालय द्वारा की जा रही बातचीत में विश्वसनीयता का अभाव दिखता है तब वह नई रूप-रेखा के साथ बातचीत को अपने स्तर पर आगे बढ़ाए।”

राफेल मामला लगातार पेचीदा होता जा रहा है. केंद्र सरकार लगातार खुद को पाकसाफ बता रही है और सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दे रही है. अक्टूबर 2018 में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि राफेल डील के लिए मोल-भाव में 7 सदस्यीय टीम शामिल थी. जिसका नेतृत्व वायु सेना के डेप्युटी चीफ ने की थी

लेकिन मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया है कि रक्षा मंत्रालय ने PMO की पहल का विरोध किया था. विरोध का कारण ये था कि जो कदम PMO ने उठाया था वो रक्षा मंत्रालय से एकदम उलट था. पीएमओ की पहल के खिलाफ रक्षा सचिव की आपत्ति का जिक्र 24 नवंबर, 2015 को लिखे एक नोट में है. इस नोट को डेप्युटी सचिव (Air-II) ने तैयार किया था.

PMO राफेल डील के लिए सामान्तर बातचीत कर रहा है ये बात रक्षा मंत्रालय को तब पता चली थी जब राफेल पर बातचीत कर रही फांस की कमेटी के हैड जनरल स्टीफन रेब ने 23 अक्टूबर, 2015 को एक चिट्ठी लिखी थी. चिट्ठी में PMO के जॉइंट सेक्रेटरी जावेद अशरफ और फ्रांस के रक्षा मंत्री के कूटनीतिक सलाहकार लुइस वासे के बीच फोन पर बातचीत का जिक्र है. इसमें लिखा हुआ है कि दोनों के बीच 20 अक्टूबर, 2015 को बातचीत हुई. रक्षा मंत्रालय ने जनरल रेब की चिट्टी को PMO के संज्ञान में लिया था.

लोकसभा चुनाव से ठीक पहले जब पीएम मोदी कह रहे हैं कि उल्टा चोर चौकीदार को डांटेतब राफेल को लेकर हुआ ये खुलासा बीजेपी की परेशानियां खड़ी कर सकता है. क्योंकि राहुल गांधी इस मामले को छोडने वाले नहीं है. और बीजेपी अपने बचाव में जो तर्क दे रही है वो मामले तो और उलझा रहे हैं.

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