अंग्रेजों के ज़माने में भारत की राजधानी रहे कलकत्ता अब कोलकाता से ममता मौजूदा राजधानी दिल्ली में हलचल पैदा करने में कामयाब रहीं. इस लड़ाई में कौन जीता कौन हारा इसकी व्याख्या सब अपने अपने-अपने हिसाब कर रहे हैं. बीजेपी कह रही है कि ये ममता हार है और ममता कह रही हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला किया वही वो चाहती थीं.
अब सवाल ये है कि इस पॉलिटिक्स के पीछे का सच क्या है. इसको आप ऐसे समझिए किए लोकसभा चुनाव को लेकर बनाई रणनीति के तहत ममता अहिस्ता अहिस्ता कदम बढ़ा रही हैं. उनकी रणनीति को समझना ज्यादा मुश्किल नहीं है. वो सीधे सीधे मोदी को घेर रही हैं और उनकी मंशा ये है कि वो आगामी चुनाव में नरेंद्र मोदी को पटखनी देखकर प्रधानमंत्री बनना चाहती हैं.
शारदा चिटफंड घोटाले में सीबीआई कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार से पूछताछ करने के लिए उनके घर पर पहुंची थी लेकिन सीबीआई के खिलाफ धरने पर बैठकर उन्होंने राष्टीय राजनीति में अपनी धमक बनाने के लिए पहला कदम बढ़ा दिया है. क्योंकि उन्होंने सीबीआई के खिलाफ नहीं बल्कि मोदी शाह को घेरने और राष्टीय राजनीति में नैरेटिव सैट करने के लिए ये धरना दिया था जिसमें वो कामयाब रहीं.
दरअसल कोलकाता पुलिस कमिश्नर पर सीबीआई ने शारदा चिटफंड मामले में सुबूतों को खत्म करने का आरोप लगाया है. और सीबीआई इसी मामले में पूछताछ करना चाहती थी लेकिन ममता ने कोलकाता में ये नहीं होने नहीं दिया और अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सीबीआई शिलांग में राजीव कुमार से पुछताछ करेगी. लेकिन यहां जैसा कहा जा रहा था कि मामला अपने पुलिस अधिकारी को बचाने के लिए धरना दे रही थीं. वो सच है क्योंकि अगर ऐसा होता हो क्या अब राजीव कुमार से पछताछ नहीं होगा क्या. ममता किसी को बचाने नहीं बल्कि अपनी जमीन बनाने में लगी हुई हैं.
ममता बनर्जी इसप्लानाडे इलाके में मेट्रो चैनल पर धरना दिया ये वही जगह है जहां पर 2006 में उन्होंने सिंगूर में टाटा मोटर्स की फैक्ट्री के लिए खेती की जमीन के अधिग्रहण के खिलाफ धरना दिया था. अब भले ही विपक्ष के पास पीएम पद के कई दावेदार हों लेकिन विपक्षी दलों में किसी एक चेहरे के लिए आम सहमति नहीं बनी है. ऐसे में ममता चाहती हैं कि वो अपनी दावेदारी पक्की करें.
अभी जीत हार को छोड़ दिया जाए तो ये तय है कि अगर ममता हालिया घटनाक्रम में बढ़त बनाने में कामयाब रहीं तो निश्चित तौर पर प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी हासिल करने में कामयाब हो जाएंगी. ये आप ऐसे समझ सकते हैं कि जब ममता धरने पर थीं तो सभी विपक्षी दल उनके सर्मथन में लामबंद हो गए थे. ममता ने पिछले कुछ सालों में अपनी जो इमेज बनाई है इसका उनको फायदा मिल सकता है.
तमाम क्षत्रपों को ये डर भी है कि अगर ममता के साथ कुछ होता है तो भविष्य में उनके साथ भी ऐसा कुछ होने की संभावना बन जाती है. एक और बात ये है कि तमाम क्षेत्रिय नेता राहुल गांधी से ज्यादा ममता के साथ सहज हैं और इसकी मिसाल कई बार देखने को मिली फिर चांहे वो बिग्रेड मैदान की एकता रैली हो या फिर उनका धरना प्रदर्शन.
ममता के साथ पूर्व प्रधानमंत्री देवेगैड़ा, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और चंद्रबाबू नायडु जैसे नेता खड़े हो रहे हैं. ममता यही चाहती थीं. जो धरने के माध्यम से हो गया. इतना ही नहीं जब ममता बनर्जी ने धरने का एलान किया तो पूरे देश में जहां भी टीएमसी को कार्यकर्ता है. या पश्चिम बंगाल में जो भी उनके समर्थक हैं वो उनके पीछे आकर खड़े हो गए. एलान के कुछ देर बाद ही ये खबर आने लगीं कि पूरे पश्चिम बंगाल में टीएमसी कार्यकर्ता सड़कों पर आ गया है.
ममता का धरना और 19 जनवरी को लगभग सभी विपक्षी दलों को कोलकाता में अपनी रैली में शामिल करना ये बात साफ करता है कि वो मौजूदा सियासी हालात में खुद को कहां देख रही हैं. चुंकि कोलकाता के ब्रिगेड ग्राउंड की रैली में 23 पार्टियों के नेताओं ने जब एक साथ हाथ उठाए तो बीजेपी के लिए ये काफी परेशानी वाला संकेत था. इससे दो काम हुए एक तो सभी नेता उनके साथ आए दूसरा ये कि उनके समर्थकों में उनकी इमेज नेशनल लीडर की बनी.
ममता चाहती हैं कि अगर लोकसभा चुनाव के बाद नेता चुना जाए तो लोग उन्हें आसानी से स्वीकार करें. ये सोचना इसलिए भी गलत नहीं है क्योंकि 2014 से लेकर 2019 तक ममता बनर्जी मोदी सरकार के खिलाफ लगातार हमले करती रहीं फिर चांहे वो गोहत्या, गोमांस पर प्रतिबंध, जीएसटी, नोटबंदी हो या फिर कोई और मुद्दा हो. कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि ममता ने अपनी इमेज ऐसी बनाई है जो विद्रोही है और देश के लिए लड़ रहा है. बीते चार दशक के उनके राजनीति सफर को देखिए
ममता की राजनीति और रणनीति
- 7 बार लोकसभा सदस्य और 3 बार केंद्रीय मंत्री रहीं
- 80 के दशक की शुरुआत में ममता ने CPI-M से मुकाबला किया
- पश्चिम बंगाल में उनका मुख्य विरोधी दल CPI-M ही था
- ममता ने तब साम्यवाद के ख़िलाफ़ अपना मोर्चा खोला था
- नंदीग्राम से सिंगूर तक धरना दिया, कॉमरेड्स को सत्ता से बाहर किया
- संघर्ष की राजनीति करने वाली नेता हैं, सड़क की राजनीति में माहिर
- 2011 में 33 सालों से सत्ता पर विराजमान CPI-M को सत्ता से हटाया
- 2016 में ममता बनर्जी ने वापसी की, तीसरी बार भी CM बन सकती हैं
- 2014 के चुनाव में ममता ने पश्चिम बंगाल की 42 में से 34 सीटें जीतीं
- बीजेपी, कांग्रेस, एआईएडीएमके के बाद बड़ी राजनीतिक ताकत बनी
वीओ- 12 फरवरी को अब ममता दिल्ली में हुंकार भरेंगी. 12 फरवरी को होगा जब संसद सत्र ख़त्म होने से पहले सभी ग़ैर-बीजेपी मुख्यमंत्री धरने पर बैठेंगे. इस तरह ये रणनीति आगे बढ़ेगी और ममता बनर्जी यहां भी केंद्र में रहेंगी…हो कुछ भी लेकिन इस वक्त ममता बनर्जी सबसे तेजी से उभर रही हैं…और उन्होंने खुद को केंद्र में लाने के लिए राजनीति के केंद्र में रखना शुरू कर दिया है. ब्यूरो रिपोर्ट स्वदेश न्यूज़