बीते करीब चार सालों में पूर्वोत्तर में बीजेपी ने अपनी मजबूत जमीन तैयार की है. कई राज्यों ने बीजेपी ने ना सिर्फ संगठन मजबूत किया बल्कि सत्ता भी हासिल की. 24 मई 2016 को जब असम में बीजेपी की सरकार बनी तो बीजेपी शासित राज्यों के 14 सीएम और पीएम मोदी के अलावा पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के साथ कई दिग्गज नेता मौजूद थे.
कांग्रेस ने जहां पूर्वोत्तर में अपनी जमीन खोई है वहीं बीजेपी ने जबरदस्त तरीके से कामयाबी हासिल की है. इस कामयाबी में पीएम मोदी का बड़ा योगदान है. बीजेपी ने पूर्वोत्तर को साधने के लिए असम को टारगेट किया क्योंकि ये विधानसभा की 126 सीटें हैं और लोकसभा की 14 सीटें हैं. विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 61 सीटें जीत कर असम में सरकार बनाई थी. इसके अलावा नेडा का गठन किया जिससे बाकी दलों को साथ लिया गया.
2016 से पहले असम में बीजेपी के पास सिर्फ पांच सीटें थीं अब 61 हैं. लिहाजा असका असर दूसरे राज्यों में भी देखने को मिला. 2016 लेकिन 2019 तक हालात काफी बदले हैं और नतीजा ये हुआ है कि लोग बीजेपी नेताओं को काले झंडे दिखा रहे हैं जो छोटी पार्टियां नेडा के साथ आईं थी वो इससे अलग हो रही हैं. नागरिकता संशोधन बिल को लेकर लोगों में काफी गुस्सा है.
पूर्वोत्तर राज्यों में लोकसभा की कुल 25 सीटें है. इनमें से करीब आधी सीटें यानी 14 सीटें असम में हैं. इसलिए बीजेपी के लिए ये राज्य महत्वपूर्ण है. ऐसे में विकास की बात करने वाली बीजेपी जब हिंदुत्व की बात करती है तो लोगों का एतवार पीएम मोदी से हटता नजर आता है. बीजेपी का ये भी कहना है कि मोदी सरकार ने जो काम कराया है उसके दम पर वो पूर्वोत्तर में अपनी धमक को और बढ़ाएंगे. बीजेपी नेता कहते हैं,
चार नए पुलों का निर्माण होगा. चार पुलों का उद्घाटन किया जा चुका है. कांग्रेस की सरकार में सिर्फ 12 फ्लाइट आती थीं अब 256 फ्लाइट यहां आती है. त्रिपुरा और मिजोरम जैसे राज्य रेल से जुड़े हैं.
बीजेपी नेता भले ही इन कामों के बल पर 2019 में बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद कर रहे हों लेकिन एक सच्चाई ये भी है कि नेडा में शामिल बीजेपी की सहयोगी पार्टियां साथ क्यों छोड़ रही है. नागरिकात संशोधन विधेयक को लेकर बीजेपी का पूर्वोत्तर में व्यापक विरोध हो रहा है यहां तक की बीजेपी के अपने विधायक भी दबी जुबान में इसका विरोध कर रहे हैं. लेकिन बीजेपी का कहना है कि वो घुसपैठियों को भारत में नहीं रहने देगी.
कब से है घुसपैठ की समस्या ?
असम में बांग्लादेश से घुसपैठ की समस्या 1918 से ही शुरू हो गई थी. तब बंटवारा नहीं हुआ था और पूर्वी बंगाल के जो लोग असम आकर बस थे वो अवैध नहीं थे.1951 में जब राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) बनाई गई तो करीब 30 प्रतिशत लोग असम में पूर्वी बंगाल के थे. 1979 में असम आंदोलन हुआ और इस आंदोलन के बाद एक समझौता किया गया जिसके मुताबिक 1971 तक आए सभी लोगों को असम में स्वीकार कर लिया गया.
विरोध इसलिए हो रहा है क्योंकि बीजेपी जो बिल लाई है उसमें 2014 तक आए हिंदू लोगों को यहाँ नागरिकता देने की बात कही गई है. अब असमिया लोगों का कहना है कि अगर इतनी बड़ी तादाद में बंगाली यहां आएंगे तो फिर असम में बचेगा क्या. असमिया कहां जाएंगे. असम में विरोध इसी बात को लेकर हो रहा है. मोदी की मुश्किल ये है कि वो यहां हिंदुत्व को धार तो दे रहे हैं लेकिन इसके चक्कर में बीजेपी के 13 सहयोगी दल उसका साथ छोड़ गए.