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झारखंड: BJP की ज़मीन खिसक सकती है!

2014 में जब मोदी लहर थी तो बीजेपी ने झारखंड की 14 में से 12 लोकसभा सीटें जीतीं थीं. उसी साल हुए विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनी थी और बीजेपी ने ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन के साथ मिलकर 42 विधानसभा सीटें जीतीं थीं. इस जीत के बाद रघुवर दास को झारखंड का सीएम बनाया गया था.

अब 2019 आ गया है यानी पांच साल हो गए हैं और फिर से चुनाव हैं. लोकसभा का चुनाव पहले होगा लिहाजा बीजेपी रघुवर दास के खिलाफ लोगों की नाराजगी को खत्म करने के लिए तरह तरह के हथकंड़े अपना रही है.

झारखंड में 14 में से 12 लोकसभा सीटें जीतने के बाद भी बीजेपी विधानसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत नहीं हासिल कर पाई थी. भाजपा 73 सीटों पर लड़ी थी और 37 सीटें जीती. जबकि सहयोगी दल आजसू आठ सीटों पर लड़ी और पांच सीटें जीती. झारखंड मुक्ति मोर्चा 19 सीटें जीतकर सबसे बड़े विपक्षी दल के रूप में उभरा, राजद और जदयू के साथ गठबंधन करने वाली कांग्रेस केवल छह सीटें ही जीत पाई.

बीजेपी ने 2009 के सुधार किया था. 2009 में बीजेपी को 20.2 प्रतिशत वोट और 18 सीटें मिली थीं. 2014 में 31.3 प्रतिशत वोट मिले यानी 11.1 प्रतिशत का लाभ हुआ लेकिन केवल 37 सीटें ही जीत सकी. लोकसभा चुनावों में 56 विधानसभा क्षेत्रों में बीजेपी को बढ़त हासिल थी और 39.9 प्रतिशत वोट मिले थे. इसलिए ये सीटें कम हैं.

अब 2019 में क्या होगा ? ये सवाल अहम इसलिए है क्योंकि झारखंड में विपक्षी दलों ने लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ मिलकर लड़ने का निर्णय लिया है. इस बात की औपचारिक घोषणा जल्द ही हो सकती है. ये भी तय माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव कांग्रेस की अगुआई में लड़ा जाएगा लेकिन विधानसभा चुनाव हेमंत सोरेन की पार्टी लीड करेगी. जो नया मोर्चा बना है उसमें जेएमएम, कांग्रेस, झारखंड विकास मोर्चा-प्रजातांत्रिक (जेवीएमपी), आरजेडी, सीपीआई, सीपीएम, सीपीआई-एमएल और मार्क्सवादी समन्वय समिति जैसी पार्टियां शामिल हैं.

जेएमएम अध्यक्ष हेमंत सोरेन, जेवीएम के अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार, कांग्रेस विधायक दल के नेता आलमगीर आलम, आरजेडी अध्यक्ष अन्नपूर्णा देवी, बीएसपी विधायक शिवपूजन मेहता के अलावा वामपंथी दलों के सभी प्रमुख नेताओं ने बैठक करने आगे की रणनीति बनाई है.

वहीं झारखंड में इस बार बीजेपी के लिए झटके वाली बात ये है कि ऑल झारखंड स्टूडेंटस यूनियन (आजसू) ने ऐलान कर दिया है कि वो विधानसभा चुनाव अकेले लड़ेगी. ऐसे में ये अहम हो गया है कि अमित शाह यहां बीजेपी की जमीन बचाएं और इसके लिए हो सकता है कि बीजेपी को मतदाताओं को ये बताना पड़े कि अमित शाह का झारखंड के साथ पुश्तैनी रिश्ता है.

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