शाही स्नान पर कितने लोगों ने डुबकी लगाई ?
कुंभ में कितने लोग आस्था डुबकी लगाएंगे ?
मेला प्रशासन ने कितने लोगों का इंतजाम किया है ?
ये वो सवाल हैं जिनसे आप आकंड़ों के खेल को समझ पाएंगे. कुंभ में दो महत्वपूर्ण स्नान हो चुके हैं और प्रशासन ये दावा कर रहा है कि दोनों स्नानों में करीब तीन करोड़ से ज्यादा लोगों ने डुबकी लगाई. लेकिन मेला प्रशासन के आकडों पर सवाल खड़े हो रहे हैं. मकर संक्राति के स्नान के बाद मेला प्रशासन ने प्रेस कॉन्फेंस करके कहा कि एक करोड़ 84 लाख लोगों ने डुबकी लगाई. सीएम ने कहा कि 2 करोड़ लोगों ने डुबकी लगाई. लेकिन ये आंकड़े झूठे इसलिए लगते हैं क्योंकि भीड़ एक करोड़ से ज्यादा नहीं थी. सड़के खाली थीं और लोग ज्यादा दिखाई नहीं दे रहे थे. लेकिन सवाल उठता है कि प्रशासन ने ये आंकड़े जुटाए कैसे. तो चलिए आपको बताते हैं कि कितने लोग आए ये पता कैसे चलता है.
कैसे होता है संख्या का आकलन ?
मेला प्रशासन घाटों पर हर घंटे स्नान करने वाले लोगों के आधार पर लोगों की संख्या का आंकलन करता है. फ़ोटोग्राफ़ी और वीडियोग्राफ़ी की मदद भी ली जाती है. रेलवे स्टेशन, बस अड्डे, और निजी गाड़ियों से भी आंकड़ा निकाला जाता है. क्योंकि डिजिटल मैपिंग का सिस्टम नहीं है लिहाजा आकंड़े पक्के नहीं होते. वैसे तो ये अर्धकुंभ है लेकिन सरकार इसे कुंभ के तौर पर प्रचारित रही है. और 4200 करोड़ रूपये का बजट खर्च किया जा रहा है. सरकारी अमला इसके आयोजन में जी जान से जुटा है. लेकिन कुंभ में वाकई कितने लोग आए इसमें झोल है. क्योंकि प्रयागराज की सड़कें खाली हैं, बसे खाली हैं, ट्रेन खाली हैं. तो सवाल ये है कि लोग आ कैसे रहे हैं ?
सांख्यिकीय विधि से निकाले आंकड़े
सांख्यिकीय विधि से देखें तो सभी 35 घाटों पर लगातार 18 घंटे स्नान स्नान से ये आंकड़ा निकाला गया. अब अगर एक आदमी को स्नान करने के लिए 0.25 मीटर की जगह और 15 मिनट का समय चाहिए तो एक घंटे में अधिकतम साढ़े 12 लोग नहा पाएंगे. अब आप इन्हें जोड़ लीजिए 18 घंटे में कितने लोगों ने स्नान किया. इसके अलावा लोग जिन रास्तों से आते हैं, जिन साधनों से आते हैं उनसे भी ये देखा जाता है कि लोग कितने आए. अब लोग रह रहे हैं कि जगह जब इतनी है ही नहीं फिर लोग आ कहां से रहे हैं. लोग तो ये भी कह रहे है कि हर साल माघ मेले में इतने लोग आते ही हैं. फिर इनता बजट खर्च करने की जरूरत क्या थी.
कुंभ में आने वाले लोगों के आकंड़े जमा करने का काम 19वीं सदी में शुरू हुआ था. 1882 के कुंभ में अंग्रेजों ने संगम आने वाले सभी प्रमुख रास्तों पर बैरियर लगाकर गिनती की थी. रेलवे के टिकटों से ये आंकड़े जमा किए गए थे. उस वक्त का आंकड़ा कहता है कि 1 जनवरी से 19 जनवरी 1882 तक 1,25000 टिकल बिके थे. बताया जाता है कि 1882 में 10 लाख लोग कुंभ में आए थे
प्रयागराज के कुंभ को हर साल करीब से देखने वाले बताते हैं कि सरकार चांहे कुछ भी कह रही हो लेकिन सच्चाई ये है कि दो करोड़ का आंकड़ा ठीक नहीं है. सरकार सिर्फ 42 सौ करोड़ के बजट की खपत दिखाने के लिए ये आकंड़े दिखा रही है.