ये संयोग ही है कि जिस महीने में कर्पूरी ठाकुर का जन्मदिन होता है आरक्षण का दांव बीजेपी सरकार ने उसी महीने में चला. आरक्षण के जिक्र हो और कर्पूरी ठाकुर का नाम न लिया जाए ये संभव नहीं. कर्पूरी ठाकुर जब बिहार के सीएम थे तो बिहार OBC आरक्षण लागू करने वाला पहला सूबा बना था.
बिहार ही राजनीति में कर्पूरी ठाकुर के कद का नेता ना हुआ और ना होगा. बिहार ही नहीं देश में कर्पूरी ठाकुर कद्वार नेताओं में शुमार होते हैं. लालू प्रसाद यादव ने राजनीतिक का जोड़ घटाना उन्हीं से सीखा और संवाद की जिस चतुराई के लिए आज लालू मशहूर हैं वो दरअसल कर्पूरी ठाकुर की ही देन है. यहां एक वाकये का जिक्र जरूरी है,
कर्पूरी ठाकुर एक कार्यक्रम में अलौली गए थे जहां पर मंच से वो बोफोर्स मामले में राजीव को घेर रहे थे. भाषण के दौरान उन्होंने एक पर्ची पर लिखकर पूछा कि ‘कमल’ को अंग्रेज़ी में क्या कहते हैं. मंच पर मौजूद लोकदल के तत्कालीन जिला महासचिव हलधर प्रसाद ने स्लिप पर ‘लोटस’ लिख दिया और कर्पूरी ठाकुर को पर्ची पकड़ा दी. पर्ची देखकर कर्पूरी ठाकुन ने कहा,
‘राजीव मने कमल, और कमल को अंग्रेजी में लोटस बोलते हैं. इसी नाम से स्विस बैंक में खाता है राजीव गांधी का.’ .
यानी बात भी हो गई और ज्यादा कुछ कहना भी नहीं पड़ा. कर्पूरी ठाकुर ने हाशिये पहुंचे वर्गों को ताकत देने में अपना पूरा जीवन खपा दिया. बिहार के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री थे कर्पूरी ठाकुर और उनके नाम के आगे जननायक की उपाधि जुड़ती उनरे कामों की वजह ले ही जुड़ी है. उन्होंने निजी और सार्वजनिक जीवन में अपने आचरण को ऊंचा रखा और आरक्षण की अहमियत को बखूबी समझा.
एक और कहानी है कर्पूरी ठाकुर से जुड़ी हुई, कहते हैं जब 1952 में वो पहली बार विधायक बनकर विधानसभा पहुंचे तो उन्हें आस्ट्रिया जाने वाले प्रतिनिधिमंडल में शामिल किया गया और पहली बार विदेश जाने का मौका मिला.
‘उस वक्त कर्पूरी ठाकुर के पास कोट नहीं था. उन्होंने एक दोस्त से कोट मांगा लेकिन वो फटा हुआ था. लेकिन उन्हें वही कोट पहनना पड़ा. जब ऑस्ट्रिया में यूगोस्लाविया के मुखिया मार्शल टीटो ने उनका फटा हुआ कोट पहने देखा तो उन्होंने नया कोट उन्हें भेंट किया’
ऐसे बहुत के किस्से हैं जो कर्पूरी ठाकुर के व्यक्तित्व को जानदार बनाते हैं. 1974 की एक और कहानी है, कहते हैं
‘कर्पूरी ठाकुर के छोटे बेटे एक बार बीमार पड़ गए थे उन्हें दिल्ली के राममनोहर लोहिया हास्पिटल इलाज के लिए भर्ती कराया गया जहां उनके दिल की सर्जरी होनी थी. इंदिरा गांधी को जब इस बात की जनकारी हुई उन्होंने एक राज्यसभा सांसद को भेजकर उन्हें एम्स में भर्ती कराया. खुद भी मिलीं और इलाज के लिए अमेरिका भेजने की पेशकश की लेकिन कर्पूरी ठाकुर ने ये कहकर इस पेशकश को ठुकरा दिया कि वो सरकार खर्च पर इलाज नहीं कराएंगे’
बात में जेपी ने व्यवस्था करके न्यूज़ीलैंड में उनके बेटे का इलाज कराया. ऐसे बहुत से किस्से हैं कर्पूरी ठाकुर से जुड़े हैं. बिहार के सीएम रहते उन्हों पिछड़ों के लिए ऐसे काम किए जिनकी आज भी मिसाल नहीं मिलती.
- 1978 में बिहार के सीएम रहते आरक्षण दिया
- सरकारी नौकरियों में 26 % आरक्षण लागू किया
- इसके लिए उन्हें मां-बहन-बेटी-बहू की गाली मिलीं
- अभिजात्य वर्ग के लोग उन्हें बहुत तंज कसते थे
उस वक्त कहा जाता था कि कर कर्पूरी कर पूरा, छोड़ गद्दी, धर उस्तरा. चुंकि वो नाई समुदाय से ताल्लुक रखते थे लिहाजा उनपर जातिगत टिप्पणियां की गईं. कर्पूरी ठाकुर के प्रधान सचिव यशवंत सिन्हा थे सिन्हा बाद में वाजपेयी सरकार में वित्त और विदेश मंत्री बने.
‘1967 में जब पहली बार नौ राज्यों में गैर कांग्रेसी सरकारों का गठन हुआ तो महामाया प्रसाद के मंत्रिमंडल में वे शिक्षा मंत्री और उपमुख्यमंत्री बने.’
‘मैट्रिक में अंग्रेज़ी की अनिवार्यता खत्म की, इससे गांव के लोगों ने हायर एजुकेशन हासिल की’
1970 में 163 दिनों के कार्यकाल और 1977 के बाद अपने कार्यकाल में उन्होंने कई एतिहासिक फैसले किए.
आठवीं तक की शिक्षा मुफ़्त की, उर्दू को दूसरी राजकीय भाषा का दर्ज़ा दिया, 5 एकड़ तक की ज़मीन पर मालगुज़ारी खत्म की, SC–ST के अलावा OBC के लिए आरक्षण लागू किया.
11 नवंबर 1978, महिलाओं के लिए 3%, ग़रीब सवर्णों के लिए 3% और पिछडों के लिए 20% कुल 26 फीसदी आरक्षण की घोषणा की.
कर्पूरी ठाकुर पिछड़ों और वंचितों में इतने लोकप्रिय थे कि वो 1984 को छोड़कर कभी कोई चुनाव नहीं हारे. 17 फरवरी 1988 को अचानक तबीयत बिगड़ने से उनका देहांत हो गया. लेकिन अपने पूरे राजनैतिक जीवन में कर्पूरी ठाकुर का हर फैसला पिछड़ों और वंचितों के लिए था.