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ना बेटी बचाई गई, ना पढ़ाई गई बस प्रचार में रकम उड़ाई गई

काशी में आयोजित प्रवासी भारतीय सम्मेलम में बतौर मुख्य अतिथि पहुंचे मॉरिशस के पीएम प्रविंद्र जगन्नाथ ने अपने संबोधनस में बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना का जिक्र किया. तो समझ आया की देश में ही नहीं विदेश में भी इस योजना की क्या अहमियत है. लेकिन मोदी सरकार ने इस योजना को कितना गंभीरता से लिया है ये समझने वाली है. क्योंकि जो आंकड़े सामने आए हैं वो चौकाने वाले हैं.

2014-15 से 2018-19 तक में मोदी सरकार इस योजना में 648 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं. 648 करोड़ रुपये में से सिर्फ 159 करोड़ रुपये जिलों और राज्यों को भेजे गए. बाकी के 364.66 करोड़ रुपये प्रचार और पब्लिकसिटी में खर्च कर दिए गए.

अब अगर आपकी गणित अच्छी है तो आंकड़ा ये कहता है कि देश में घटते लिंग अनुपात को बढ़ाने और लड़कियों को लेकर पिछड़ी सोच में बदलाव लाने के उद्देश्य से शुरू की गई पीएम की इस महत्वाकांक्षी योजना ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ के तहत जो रकम खर्च होनी थी उसमें से 56 फीसदी से ज्यादा हिस्सा सिर्फ प्रचार में खर्च किया गया.

और ये आंकड़े किसी प्राइवेट संस्था के नहीं हैं. चार जनवरी को लोकसभा में केंद्रीय महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री डॉ. वीरेंद्र कुमार ने अपने जवाब में ये आकंड़े दिए थे. इस योजना के कुल बजट में से 56 फीसदी से ज्यादा यानी करीब 364.66 करोड़ रुपया प्रचार के नाम पर खर्च किया गया और 25 फीसदी से कम राज्यों को भेजा गया और 19 फीसदी से ज्यादा रकम तो जारी ही नहीं हुई.

ये पीएम मोदी की महत्वाकांक्षी योजना थी और पीएम ही नहीं बल्कि दूसरे देशों के राष्ट्राध्यक्ष भी इस योजना का जिक्र करते रहते हैं लेकिन हकीकत ये है कि इस योजना सिर्फ प्रचार के लिए बनाई गई लगती है. 22 जनवरी, 2015 को शुरू हुई इस योजना को महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और मानव संसाधन विकास मंत्रालय के माध्यम से देशभर में लागू करने का फैसला किया था. लेकिन ये कैसे लागू हुई ये आंकड़े बताते हैं.

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