JNU में कथित तौर पर राष्ट्रविरोधी नारेबाजी के मामले में दिल्ली पुलिस ने 900 दिन बाद पटियाला हाउस कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की थी. JNU के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार समेत कई लोगों के खिलाफ 1200 पन्नों की चार्जशीट दाखिल की गई है.
इस चार्जशीट को दाखिल करने की टाइमिंग पर सवाल खड़े हो रहे हैं. कुछ लोगों को कहना है कि लोकसभा चुनाव में फायदा लेने के लिए इस वक्त ये चार्जशीट दाखिल की गई है. जिन छात्रों को राजद्रोह के मुकदमे में आरोपी बनाया गया है वो खुद को बेकसूर कह रहे हैं. अगर राजद्रोह के मामलों में कार्रवाई देखें तो इसकी रफ्तार काफी कम है.
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नैशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) के पास सिर्फ 2014 से 2016 तक का डेटा है. 2014 से लेकर 2016 तक के आंकड़े कहते हैं
179 लोगों को राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया, 2016 के आखिर तक पुलिस ने इनमें से 80 पर्सेंट से ज्यादा मामलों में चार्जशीट फाइल नहीं की है, अदालत में राजद्रोह से जुड़े 90 प्रतिशत मामलों में ट्रायल लंबित है।
एनसीआरबी के डेटा से ये भी पता चलता है कि 2014 की शुरुआत से राजद्रोह के मामलों में गिरफ्तारियों में इजाफा हुआ है. साल की शुरुआत में सिर्फ 9 लोगों पर राजद्रोह कस्टडी में थे और वो जमानत पर बाहर थे.
2014 के आखिर में 58 गिरफ्तारियां दर्ज की गईं. पुलिस सिर्फ 16 आरोपियों के खिलाफ ही चार्जशीट दाखिल कर पाई, 2014 में कुल 29 राजद्रोह के आरोपी ट्रायल के लिए लाए गए, सिर्फ 4 के खिलाफ ही ट्रायल पूरा हो पाया जिसमें 3 आरोपी बरी हो गए
2015 में राजद्रोह के आरोप में कुल 73 लोग गिरफ्तार किए गए, पिछले साल के बैकलॉग को जोड़ लें तो लंबित जांच वाले आरोपियों की संख्या बढ़कर 124 हो गई
अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि राजद्रोह जैसे गंभीर मामलों में भी हमारा सिस्टम कितने लचर तरीके से काम करता है. कहा ये भी जा रहा है कि इस तरह के ज्यादातर मामले राजनीति से प्रेरित होते हैं.