एक ऐसा मेला जहां करीब 12 करोड़ श्रद्धालुओं के आने की संभावना है. जहां गंगा, यमुना और पौराणिक गाथाओं में वर्णित सरस्वती के संगम का पवित्र स्थान है. जिसके बारे में कहा जाता है कि मेले के दौरान संगम में डुबकी लगाने से जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिलती है वहां जो श्रद्धालु आते हैं वो ठहरते कहां हैं ये प्रश्न आपके लिए महत्वपूर्ण होगा. तो चलिए बताते हैं.
इस बार लोगों के ठहरने के लिए सिलसिलेवार तंबुओं की कतारें लगाई गईं हैं. मेले में लोगों के ठहरने का इंतजाम करने के लिए हज़ारों अधिकारी चौबीसों घंटे काम में व्यस्त रहे. करीब 6000 धार्मिक और सांस्कृतिक संगठनों को मेले में जगह बांटी गई है. ये संगठन कुंभ के बड़े इलाके में टैंट लगाकर कल्पवास कर रहे हैं. मेला 32 वर्ग किलोमीटर बड़े क्षेत्र में आयोजित किया जा रहा है, यह एक बड़े शहर के बराबर है.
सदियों से ये मेला आयोजित होता आया है और हर बार इसके लिए सरकार व्यापक तैयारियां करती है. कहते हैं कि 2001 में आयोजित कुंभ मेला इलाहाबाद का पहला ऐसा ‘मेगा मेला’ था. जिसकी मिसाल नहीं मिलती. इस बार सरकार मेले पर करीब 28 अरब रुपये खर्च कर रही है. कहा ये जा रहा है कि 49 दिनों के मेले में कई देशों की आबादी के बराबर लोग पहुंचने और संगम में डुबकी लगाएंगे.
लोगों के यहां पहुंचने केलिए नया हवाईअड्डा दिल्ली से एक घंटे से भी कम समय में आगंतुकों को यहां पहुंचा रहा है. सड़कों को चौड़ा किया गया है, नए फ्लाइओवर्स बनाए गए हैं, मेला ग्राउंड में 300 किलोमीटर सड़कें बनाई गई हैं. इतना ही नहीं मेले में आने वाले लोगों के वाहनों के लिए ऐसी पार्किंग बनाई गई है जहां पर करीब पांच लाख गाड़ियां खड़ी हो सकती हैं. कई ट्रेनों की घोषणा की गई है.
रेलवे को उम्मीद है कि इस बार करीब 35 लाख लोग ट्रेन से मेले में पहुंचेंगे. शहर के सभी 8 स्टेशनों का रंग रोगन किया गया है. रेलवे ने ऐसे इंतजाम किए हैं कि कोई अनहोनी न हो क्योंकि पिछली बार दुर्घटना में 40 लोगों की मौत हुई थी. यहां एक नया प्लेटफॉर्म जोड़ा गया है, कई प्लेटफॉर्म्स को जोड़ते एक पैदल यात्री पुल का निर्माण किया गया है. यात्रियों के लिए कलर कोड के साथ वेटिंग एरिया बनाया गया है, ताकि भीड़ को नियंत्रित किया जा सके. करीब 5000 रेलवे कर्मचारियों की तैनाती की गई है.