सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमो मायावती ने लखनऊ के ताज होटल में प्रेस कॉन्फ्रेंस की और लोकसभा चुनाव की डील लॉक हो गई. दोनों पार्टियों के बीच औपचारिक गठबंधन का ऐलान हो गया है और मैदान में उतरने की तैयारी है. सपा- 38, बसपा- 38, अन्य-2, कांग्रेस-2 के लिए दो सीटें छोड़ी गईं हैं. मायावती ने कहा,
“मैं ये बताना चाहती हूं कि कांग्रेस पार्टी को शामिल नहीं करने की वजह ये है कि आज़ादी के बाद कांग्रेस ने राज्य से लेकर केंद्र में राज किया है. इस दौरान देश में वंचित शोषितों के ख़िलाफ़ अन्याय किया गया है.”
मायावती ने ये भी बताया कि उन्होंने कांग्रेस को क्यों इस गठबंधन में शामिल नहीं किया. उन्होंने कहा कि
कांग्रेस ने ही देश में अधिकतर समय शामिल किया और इनके शासनकाल में गरीबी, बेरोज़गारी और भ्रष्टाचार बढ़ा है. इसके परिणास्वरूप ही बसपा और सपा जैसी पार्टियों का गठन हुआ और कांग्रेस की सत्ता से मुक्ति मिल सके.
अखिलेश यादव ने भी मायावती के बाद कहा कि दोनों पार्टियों ने एक दूसरे का सम्मान रखा है और आगे आने वाले वक्त में दोनों पार्टियां इस गठबंधन का आगे लेकर जाएंगी. दोनों नेताओं की बात करें तो दोनों नेताओं की काम करने की अपनी शैली है और इसका फायदा उन्हें होगा. मायावती 1984 से राजनीति में हैं और वो एक मजबूत प्रशासक के तौर पर जानी जाती हैं.
अखिलेश यादव ने 2017 का विधानसभा चुनाव हारने के बाद अपने शैली में काफी बदलाव किया है और वो बेदाग छवि के नेता हैं. दोनों नेताओं की ताकत कमजोर हुई थी. पिछले लोकसभा चुनाव में मायावती के हाथ एक भी सीट नहीं लगी थी. और विधानसभा चुनाव में उनके हाथ सिर्फ 19 विधानसभा सीटें लगी थीं. लेकिन फिर उनके पार उनका कोर वोट है.
अखिलेश यादव ने इस बैठक में कहा कि उत्तरप्रदेश ने हमेशा देश को हमेशा पीएम दिया है और वो चाहते हैं कि उत्तरप्रदेश से एक और पीएम मिले. ये बात अखिलेश ने उस सवाल के जवाब में कही जिसमें उनसे पूछा गया था कि क्या वो मायावती को पीएम बनवाएंगे?
अखिलेश यादव लागातार अपने कार्यकाल में किए गए विकास की बात करते हैं और आज भी वो कई मामलों में योगी पर भारी पड़ रहे हैं. साफ है कि आने वाले समय में अखिलेश यादव मजबूत होंगे. मायावती से जब इस प्रेस क्रांफ्रेस में पूछा गया कि वो क्या इस चुनाव के बाद भी इस गठबंधन में रहेंगी तो उन्होंने कहा कि ये गठबंधन लंबा चलेगा.