डॉक्टरों की कमी, अस्पतालों की जर्जर हालत और लचर स्वास्थ्य नीतियां गरीबों को और गरीब कर रही हैं. सिर्फ गरीब ही नहीं गरीबी रेखा से ऊपर के लोग भी स्वास्थ्य की गड़बड़ी के चलते गरीबी रेखा के नीचे आ रहे हैं. भारत में महंगे होते इलाज की वजह से सालाना सात प्रतिशत लोग गरीबी रेखा के नीचे आ जाते हैं.
महंगे इलाज की वजह से सालाना 23% लोग अपना इलाज नहीं करा पाते. अभी भी 70% लोगों को इलाज का खर्चा खुद ही उठाना पड़ता है. मोदी सरकार आयुष्मान योजना के माध्यम से लोगों को मुफ्त स्वास्थ्य सेवाओं देने का वादा करती है. लेकिन हकीकत ये है कि इसका बहुत फायदा नहीं मिल पा रहा है क्योंकि पश्चिम बंगाल जैसे राज्य इस योजना में दिलचस्पी नहीं ले रहे.
हालात इतने खराब हैं कि एक दशक बीत जाने के बाद भी भारत में जीडीपी का सिर्फ 1.3 % ही स्वास्थ्य सेवाओं में खर्च किया जाता है. राष्टीय स्वास्थ्य नीति-2017 में कहा गया है कि 2025 तक इसको 2.5 फीसदी करेंगे. हम इस श्रेणी में भूटान जैसे छोटे देशों से भी पीछे हैं. जहां जीडीपी का 2.5 % स्वास्थ्य पर खर्च किया जाता है.
हालात ये है कि आबादी सात गुना तेजी से बढ़ी और अस्पताल दोगुनी रफ्तार से भी नहीं बने. पूरे देश में सिर्फ 70 हजार अस्पताल हैं. इस अस्पतालों में करीब 38 हजार अस्पताल ऐसे हैं जहां पर सिर्फ 30 या उससे कम बेड हैं. 100 से ज्यादा बेड वाले अस्पतालो की संख्या सिर्फ 3000 है. आंकड़ा ये है कि करीब 600 नागरिकों के लिए सिर्फ एक बिस्तर है. नेशनल हेल्थ प्रोफाइल, 2018 के मुताबिक
- 2009-10 में स्वास्थ्य सेवाओं पर प्रति व्यक्ति सालाना सरकारी खर्च 621 रुपए था
- 2015-16 में स्वास्थ्य सेवाओं पर प्रति व्यक्ति सालाना सरकारी खर्च 1,112 रुपए था
दुनिया के दूसरे देशों से मिलाकर देखें तो भारत बहुत पीछे है.
- स्विट्जरलैंड का खर्च प्रति व्यक्ति 6,944 अमेरिकी डालर है.
- अमेरिका का 4,802 डालर और इंग्लैंड का 3500 अमेरिकी डालर है.
WHO के आकंड़े बताते हैं भारत में स्वास्थ्य सेवाओं पर होने वाले खर्च का 67.78 % आम लोगों की जेब से जाता है जबकि इस मामले में वैश्विक औसत महज 18.2 % है.भारत में इलाज लोगों को गरीब कर रहा है और सरकार के पास कोई पुख्ता योजना नहीं है. मोदी सरकार ने आयुष्मान भारत योजना शुरू की है जिसमें देश के 10 करोड़ परिवारों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने की योजना है.
सरकार का कहना है कि इस योजना में इलाज पर होने वाला पांच लाख रुपए तक का खर्च सरकार उठाएगी और 1.5 लाख हेल्थ एंड वेलनेस केंद्र खोलेगी. केंद्र और राज्य दोनों मिलकर इसका खर्च उठाएंगे.लेकिन राज्य और कई अस्पताल इस योजना में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे. लिहाजा इसके कामयाब होने की उम्मीद कम ही है.