प्लीज़ मेक पान, आई वॉन्ट पान, जैसा बोल पाया वैसा बोला, और दे दिया पान का ऑर्डर चचा ने. और अंग्रेजी क्यों न बोलते, चचा आजकल इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स कर रहे थे उस एकेडमी से जहां पर तोता भी अंग्रेजी बोलता है. तो भला चचा क्यों न बोलते. चचा को अंग्रेजी बोलने का चस्का तब लगा जब वो आगरा में ताजमहल देखने गए. एक उन्हीं की उम्र का आदमी अंग्रेजी मैम को ताजमहल के बारे में बता रहा था और मुस्कुरा रहा था. चचा ने उस आदमी से कुछ पूछा लेकिन उसने चचा को झटक दिया. बस चचा को अहसास-ए-कमतरी खा गई और पहुंच गए अंग्रेजी सीखने. अब बुढ़ापे में आसान थोड़ी न होता है कुछ सीखना सो पूरी जान लगा दी चचा ने. नतीजा ये हुआ कि उठने से लेकर सोने तक हिंदी को बाय करके अंग्रेजी का हाय कर लिया.
चचा ने जैसे ही अंग्रेजी में पान मांगा पास में ही खड़े प्रोफेसर साहब ने की भौंह तन गई. बोले,
अरे चचा
बोल नहीं पाते तो क्यों अंग्रेजी की ऐसी तैसी कर रहे हो. आज तो कम से कम हिंदी बोल लो, आज हिंदी दिवस है.
चचा ने कहा, मुंह बंद रखो अपना यहां अंग्रेजी सीखने के लिए मरे जा रहे हैं और तुम ज्ञान दे रहे हो. अंग्रेजी से बिना कुछ काम ही नहीं हो रहा. संसद में तक तो कोई हिंदी बोलता नहीं है. सब जरूरी काम अंग्रेजी में हो रहे हैं. और तो और लेटरपैड, विज़िटिंग कार्ड यहां तक आजकल तो शादी-ब्याह के निमंत्रणपत्र भी अंग्रेजी में छप रहे हैं. और हां प्रोफेसर तुमने भी तो अपनी बिटिया की शादी के कार्ड भी अंग्रेजी में ही छपे थे. और ज्ञान दे रहे हो.
हिंदी सीख के का घंटा उखाड़ेंगे. हिंदी मीडियम स्कूल में पढ़ते हैं ये बोल दो तो लोग ऐसे बच्चों को हिकारत से देखते हैं जैसे कोई पाप कर दिया हो. क्या खाक हिंदी में बोलें. शर्म के मारे मरे जा रहे हैं जब से आगरा से लौटकर आए हैं. और तुमने लगा रखा है हिंदी बोलो, हिंदी बोलो. कोर्ट का फैसला आया आजतक समझ नहीं पाए हम, जो वकील ने समझा दिया वही समझे हैं. और टीवी देखो तो उसमें भी अंग्रेजी भरी पड़ी है. ऐसा लग रहा है. ‘ग़रीब की जोरू, गांव की भाभी’ इसलिए ज्ञान मत दो…
ए पानवाले, क्विक ‘गिव मी पान’
एक सांस में चचा इतना बोल गए कि सामने वाला मुंह ताक के चलता बना. पान वाले ने चचा को देखा और पूछा,
चचा जे बताओ अंग्रेजी का पूरी दुनिया में बोली जाती है. चचा अब हिंदी में बोले. नहीं यार, जहां से अंग्रेजी आई है ना यूरोप से. वहां सब अंग्रेजी सीखते हैं लेकिन सिर्फ 3 देश ब्रिटेन, आयरलैंड और माल्टा ये तीन देश ही अंग्रेजी में अपना काम करते हैं बाकी सब अपने अपने देश की भाषाओं का इस्तेमाल करते हैं. तुम्हें बता दें कि फिजी में हिंदी को आधिकारिक भाषा का दर्जा मिला है. नेपाल के त्रिभुवन विश्वविद्यालय, श्रीलंका के कोलंबो विश्वविद्यालय में हिंदी का अलग विभाग है. जापान में करीब 6 विश्वविद्यालयों और संस्थानों में हिंदी पढ़ाई जाती है.
अमेरिका के 75 विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जाती है. अमेरिका में हिंदी को बढ़ावा देने के लिए अंतरराष्ट्रीय हिंदी समिति, विश्व हिंदी समिति और हिंदी न्याय काम रही हैं. विश्व, सौरभ, क्षितिज और हिंदी जगत वहां छपती हैं जो लोग पढ़ते हैं. आस्ट्रेलिया में ‘हिंदी समाचार पत्रिका’, ब्रिटेन से त्रैमासिक ‘प्रवासिनी’ और ‘पुरवाई’, म्यांमार में मासिक ‘ब्रह्मभूमि’, गुयाना से मासिक ‘ज्ञानदान’, सूरीनाम से ‘आर्यदिवाकर’ और मासिक पत्रिका ‘सरस्वती’ जैसी पत्रिकाएं छपती हैं. सब जगह हिंदी की और वहां की भाषा की इज्जत है बस हमारे यहां ही सब अंग्रेजी के लिए मरे जा रहे हैं. अरे हम तो कहते हैं पढ़ो अंग्रेजी लेकिन हम जैसे लोगों को अंग्रेजी में बोलने के लिए मजबूर तो न करो बेइज्जती करके.
ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश भी आज चीन-जापान-कोरिया-ताइवान जैसे उन एशियाई देशों से पिछड़ते जा रहे हैं, जिनकी अंग्रेज़़ी न तो मातृभाषा है और न जिनकी चित्रलिपी रोमन या लैटिन जैसी है. कमी यही है कि हम ‘घर के जोगी को जोगड़ा और आन गांव वाले को सिद्ध’ मानने की हीन भावना से पीड़ित हैं. इसलिए हमें हिंदी को बाय कर दिया है. भाई. अब तो अंग्रेजी सीख के रहेंगे. चांहे कुछ हो जाए.