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नागरिकता संशोधन विधेयक का सियासी कनेक्शन

पूर्वोत्तर में बीजेपी उत्तर भारत के नुकसान की भरपाई करना चाहती है. बीजेपी को पता है कि उत्तर भारत में उसे 2014 के अपेक्षा 2019 में कम सीटें मिलेंगी. बीजेपी इन सीटों की भरपाई 20 से 25 सीटें जीतना चाहती है. बीजेपी को उम्मीद थी कि नागरिकता संशोधन विधेयक 2016 उसकी इस रणनीति में उसकी मदद करेगा. लेकिन लोकसभा में इस विधेयक के पास होने के बाद पूर्वोत्तर के तमाम राज्यों में इसका विरोध शुरू हो गया है. बीजेपी नेता ही इस बिल के विरोध में सड़कों पर उतर आए हैं.

क्या है नागरिक संशोधन बिल 2016 ?

ये बिल पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले गैरमुस्लिमों के लिए भारत की नागरिकता आसान बनाने के मकसद से लाया गया है. इस बिल में है कि जो गैरमुस्लिम भारत आएंगे उन्हें 12 के बजाय 6 साल में ही भारत की नागरिकता मिल जाएगी. इस बिल में ये भी है कि 1985 के असम समझौते के मुताबिक 24 मार्च 1971 से पहले राज्य में आए प्रवासी ही भारतीय नागरिकता के पात्र थे. लेकिन नागरिकता (संशोधन) विधेयक में यह तारीख 31 दिसंबर 2014 कर दी गई है. ये बात बीजेपी के खिलाफ जा रही है और बीजेपी के नेता ही उसके खिलाफ खड़े हो गए हैं.

बिल का विरोध करने वाले कह रहे हैं कि धर्म के आधार पर नागरिकता नहीं दी जा सकती क्योंकि भारत धर्मनिरपेक्ष देश है. बीजेपी सरकार इस पर तर्क दे रही है कि वो इस बिल के माध्यम से असम को मुस्लिम बहुल्य होने से बचा रहे हैं.

असम के मूलनिवासी बाहरी लोगों की पहचान हिंदू-मुस्लिम आधार पर नहीं करते. वे उन हिंदू बंगालियों को भी बाहरी मानते हैं जो बांग्लादेश से वहां आए हैं. असमिया भाषी लोगों का मानना है कि बांग्लाभाषी उनकी सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान के लिए बड़ा खतरा हैं.

असम की बराक घाटी में बांग्लादेश से आए हिंदू प्रवासी विधेयक के पक्ष में है. लेकिन असम गण परिषद जैसे स्थानीय संगठन बिल के विरोध में हैं. हालांकि सरकार प्रदर्शनकारियों को शांत करने के लिए कह रही है कि संविधान के अनुच्छेद 371 और असम समझौते की धारा छह के जरिये मूल निवासियों के राजनीतिक अधिकारों और सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान को सुरक्षित रखा जा सकता है.

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