भारत में क्यों नहीं मिल रही युवाओं को नौकरी ?

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हफ्ते में सिर्फ 15 घंटे काम कर अच्छी जिंदगी बिताई जा सकती है. अगर ऐसा संभव हो सके तो इस समय काम करने वाले हर व्यक्ति पर दो और लोगों को काम मिल सकेगा. बेरोजगारी खत्म हो जाएगी और सभी आराम की जिंदगी जी सकेंगे.रुटगर ब्रेगमन, डच इतिहासकार

युवाओं को रोजगार देने के लिए विकास की योजनाओं को नियमित गति देने की जरूरत होती है. सरकारों को हर चीज का रिकॉर्ड रखना होता है. और जानना होता है कि कितने युवाओं ने पढ़ाई पूरी की है. कितनों को रोजगार मिला हैं और कितने युवा बेरोजगार हुए हैं. दुनिया में ज्यादातर देशों में सरकार रोजगार के आंकड़े जुटाती हैं लेकिन भारत में ऐसा नहीं किया जाता. भारत में सरकारी आंकड़ों में रोजगार और बेरोजगारी का हिसाब आपको नहीं मिलेगा. अगर आप ये आंकड़े देखना चाहते हैं तो सेंटर फॉर मोनिटरिंग इंडियन इकॉनोमी प्राइवेट लिमिटेड जैसी कंपनियों के पास जाना होगा. इस कंपनी के मुताबिक

‘भारत में बेरोजगारी दर पिछले 27 महीनों के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचकर 7.38 % हो गई है. पिछले 12 महीनों में 1.09 करोड़ नौकरियां खत्म हो गई हैं.’

भारत में सरकारों नौकरियां देने के लिए संवेदनशील दिखाई नहीं देतीं. यहां की सरकारें सिर्फ चुनाव जीतने के लिए नौकरी को जुमला बनाने में यकीन करती हैं. यही कारण है कि हमारे देश में युवाओं की नौकरियों और बेरोजगारी के बारे में हिसाब नहीं रखा जाता. दुनिया के दूसरे मुल्कों की बात करें तो वहां नौकरियों को लेकर संवेदनशीलता नजर आती है.

करीब 8.1 करोड़ की आबादी वाले जर्मनी में 2017 में 4.4 करोड़ लोग रोजगार में थे. इनमें से 1.8 करोड़ महिलाएं थीं, महिलाएं पार्ट टाइम नौकरी करती हैं, जर्मनी के सरकारी दफ्तरों में करीब 47 लाख लोग काम करते हैं, जर्मनी में मैन्युफैक्चरिंग में 24% लोग काम करते हैं. देश की कामकाजी आबादी का तीन चौथाई हिस्सा सर्विस सेक्टर में नौकरी करता है. सेवा क्षेत्र में कुशल कामगार अहम भूमिका निभाते हैं. करीब 55 लाख लोग 10 लाख छोटे उद्यमों में काम करते हैं. कृषि में सिर्फ 1 प्रतिशत लोग काम करते हैं.

इसी तरह दुनिया के तमाम देश अपने यहां रोजगार का हिसाब रखते हैं लेकिन भारत में ऐसा नहीं होता. दुनिया में जो भी देश अपने आप को आगे ले जाना चाहता है वो मैनपॉवर का बेहतर इस्तेमाल करने का प्रबंध करता है. लेकिन विड़वना है कि हमारे देश में ऐसा नहीं किया जाता. प्रबंधन तो दूर की बात है रोजगार का हिसाब भी नहीं रखा जाता. अब आप सोचिए जब इतनी असंवेदनशीलता बरती जाएगी तो कैसे मिलेगी युवाओं को नौकरी ?

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