एक बात तो तय है कि चुनाव में आरक्षण एक ऐसा मुद्दा है जो चुनाव जिताने का दम रखता है. आरक्षण को लेकर किसी नेता का एक बयान उसका राजनीतिक नफा-नुकसान हिसाब तय करता है. यही कारण है कि मोदी ने 17वीं लोकसभा चुनाव से ठीक पहले एक दांव चला है. दांव गरीब सवर्णों को दस फीसदी आरक्षण देने का.
सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण देने के फैसले के प्रस्ताव को केंद्रीय कैबिनेट की मंजूरी मिल गई है. प्रस्ताव के मुताबिक आठ लाख रुपये से कम के सालाना आमदनी वाले अगड़ी जातियों के लोगों को आरक्षण का लाभ मिलेगा. यह आरक्षण पहले से आरक्षण के लिए तय अधिकतम 50 फीसदी की सीमा के ज्यादा होगा. लिहाजा सरकार को इसे लागू करने के लिए संविधान संशोधन करना होगा. मोदी सरकार इसके लिए संसद में संविधान संशोधन विधेयक पेश करेगी.
शीतकालीन सत्र के आखिरी दिन मोदी सरकार को संविधान संशोधन विधेयक पेश करना है. अब अगर मोदी सरकार ऐसा कर भी देती है तो बिल को पारित नहीं कर पाएगी. वहीं दूसरी समस्या ये है कि लोकसभा में तो मोदी सरकार के पास बहुमत है लेकिन राज्यसभा में बहुमत है नहीं लिहाजा सरकार को इसको पास करना चुनौती होगी. इस फैसले को लागू करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में संशोधन करना होगा. अगर सरकार इन दोनों अड़चनों को पार कर भी लेती है तो तीसरी अड़चन न्यायपालिका की है. क्योंकि पहले भी कई बार सुप्रीम कोर्ट ने ये कहा है कि आरक्षण 50 फीसदी की सीमा से ज्यादा नहीं होनी चाहिए. तो अगर संसद से सरकार प्रस्ताव पारित करा भी लेती है तो न्यायपालिका से इसे मंजूदी मिलना बड़ी समस्या है. क्योंकि सुप्रीम कोर्ट इस तरह के दूसरे मामलों में जो कहा है उसके मुताबिक इस प्रस्ताव का अदालती परीक्षण में पास होना मुमकिन नहीं लगता.
- देश में 12-14 फीसदी आबादी सवर्ण है
- सरकारी नौकरी और एडमिशन में आरक्षण मिलेगा
- देश में आरक्षण का प्रतिशत 50 के पार चला जाएगा
- ब्राह्मण और राजपूत जैसी जातियों को मिलेगा फायदा
- धारा 15-16 में बदलाव से रास्ता होगा साफ
- धारा 15 के तहत शिक्षण संस्थानों में मिलेगा दाखिला
- धारा 16 में संशोधन से सरकारी नौकरियों में फायदा
- आरक्षण का कोटा 49.5% से बढ़ाकर 59.5% किया जाएगा
- 8 लाख रुपये से कम सालाना आमदनी वाले को मिलेगा आरक्षण
- शहर में 1000 स्क्वेयर फीट, गांव में 5 एकड़ से कम जमीन वालों को फायदा
- देश की हिंदू आबादी में 31% सवर्ण हैं
- 125 लोकसभा सीटों पर सवर्ण जीतते हैं
- 1931 के बाद जातिगत जनगणना नहीं हुई
- 90 के दशक में मंडल आयोग की रिपोर्ट आई
- पिछड़े वर्ग की आबादी 50% से ज्यादा बताई
- 2007 में सांख्यिकी मंत्रालय ने एक सर्वे किया
- हिंदू आबादी में पिछड़ा वर्ग की संख्या 41%
- 2007 में सवर्णों की संख्या 31 प्रतिशत पाई गई
- बीजेपी 2014 में 56 % सवर्णों ने अपना वोट दिया
मोदी सरकार को शायद 2014 का आंकड़ा याद रहा होगा. क्योंकि 16वीं लोकसभा चुनाव में 125 लोकसभा सीटें ऐसी थी जहां जातिगत समीकरणों पर सवर्ण उम्मीदवार भारी पड़े थे. शायद इसीलिए मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले की भी परवाह नहीं की जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि 50% से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जा सकता.
‘अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग या इनके अलावा किसी भी अन्य विशेष श्रेणी में दिए जाने वाले आरक्षण का कुल आंकड़ा 50% से ज्यादा नहीं होना चाहिए’
‘संविधान के अनुच्छेद 16 में देश के पिछड़े नागरिकों को आरक्षण देने का जिक्र है. कार्मिक मंत्रालय ने जुलाई 2016 में बताया था कि देश में अभी जातिगत आधार पर 49.5% आरक्षण दिया जा रहा है’
किस वर्ग को कितना आरक्षण?
ओबीसी – 27%
एससी – 15%
एसटी – 7.5%
कुल – 49.5%
आजादी से पहले ही नौकरियों और शिक्षा में पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण देने की शुरुआत कर दी गई थी.
कैसे हुई आरक्षण की शुरुआत ?
- आजादी के पहले प्रेसिडेंसी रीजन और रियासतों हुई शुरुआत
- बड़े हिस्से में पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की शुरुआत हुई
- कोल्हापुर के महाराजा छत्रपति साहूजी महाराज ने शुरूआत की
- 1901 में पिछड़े वर्ग से गरीबी दूर करने ये कदम उठाया गया
- राज्य प्रशासन में पिछड़ों को नौकरी देने के लिए आरक्षण दिया
- भारत में दलितों के कल्याण के लिए ये पहला आदेश जारी हुआ
- 1908 में अंग्रेजों ने प्रशासन में हिस्सेदारी के लिए आरक्षण शुरू किया
- 1921 में मद्रास प्रेसिडेंसी ने सरकारी आदेश जारी किया
- इस आदेश में गैर-ब्राह्मण के लिए 44 फीसदी आरक्षण दिया गया
- ब्राह्मण, मुसलमान, एंग्लो/ईसाई को 16% और 8% आरक्षण दिया
- 1935 में भारत सरकार अधिनियम 1935 में सरकारी आरक्षण को सुनिश्चित किया
- 1942 में अम्बेडकर ने सरकारी सेवाओं और शिक्षा में आरक्षण की मांग की
आरक्षण का उद्देश्य केंद्र और राज्य में सरकारी नौकरियों, कल्याणकारी योजनाओं, चुनाव और शिक्षा के क्षेत्र में हर वर्ग की हिस्सेदारी सुनिश्चित करने का था. जिससे समाज के हर वर्ग को आगे आने का मौका मिले. सवाल उठा कि आरक्षण किसे मिले, इसके लिए तीन कैटेगरी बनाई गईं.
‘पिछड़े वर्गों को तीन कैटेगरी अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में बांटा गया…अनुसूचित जाति (SC)15 %,अनुसूचित जनजाति (ST)7.5 %, अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC)को 27 %, कुल आरक्षण49.5 % दिया गया है’
- मराठाओं को 16% और मुसलमानों को 5% अतिरिक्त आरक्षण दिया
- तमिलनाडु में सबसे अधिक 69 फीसदी आरक्षण लागू किया गया है
- महाराष्ट्र में 52 और मध्यप्रदेश में कुल 50 फीसदी आरक्षण लागू है
‘15(4) और 16(4) के तहत अगर साबित हो जाता है कि किसी समाज या वर्ग का शैक्षणिक संस्थाओं और सरकारी सेवाओं में उनका पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है तो आरक्षण दिया जा सकता है…1930 में एच. वी. स्टोर कमेटी ने पिछड़े जातियों को ‘दलित वर्ग’, ‘आदिवासी और पर्वतीय जनजाति’ और ‘अन्य पिछड़े वर्ग’ (OBC) में बांटा था’
‘भारतीय अधिनियम 1935 के तहत ‘दलित वर्ग’ को अनुसूचित जाति और ‘आदिम जनजाति’ को पिछड़ी जनजाति नाम दिया गया. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया है.’
- आरक्षण के लिए राज्यों ने पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया गया
- आयोग के पास राज्य के अलग-अलग तबकों की सामाजिक स्थिति का ब्यौरा है
- ओबीसी कमीशन इसी आधार पर अपनी सिफारिशें देता है
- मामला पूरे देश का है तो राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग अपनी सिफारिशें करता है
1993 के मंडल कमीशन केस में SC की 9 जजों की बैंच ने एक अहम बात कही थी.
‘जाति अपने आप में आरक्षण का आधार नहीं बन सकती. उसमें दिखाई देना चाहिए कि पूरी जाति शैक्षणिक और सामाजिक रूप से बाकियों से पिछड़ी है.’
आर्थिक आधार पर आरक्षण को सर्वोच्च न्यायालय पहले खारिज कर चुका है. 1991 में मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू होने के बाद ये फैसला किया गया था. नरसिंहा राव ने गरीब सवर्णों को 10% आरक्षण देने का फैसला किया और 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक करार देते हुए खारिज कर दिया इसके बाद राजस्थान सरकार ने 2015 में उच्च वर्ग के गरीबों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की सरकार ने 14% और पिछड़ों में अति निर्धन के लिए 5% आरक्षण की व्यवस्था की लेकिन ये भी नहीं चल पाई. हरियाणा सरकार का भी ऐसा फैसला न्यायालय में नहीं टिक सका था.
बीजेपी ने 2003 में एक मंत्री समूह का गठन किया था आरक्षण के लिए लेकिन इसका फायदा नहीं हुआ और वाजपेयी सरकार 2004 का चुनाव हार गई. साल 2006 में कांग्रेस ने भी एक कमेटी बनाई जिसको आर्थिक रूप से पिछड़े उन वर्गों का अध्ययन करना था जो मौजूदा आरक्षण व्यवस्था के दायरे में नहीं आते हैं. लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ. अब देखना होगा की मोदी सरकार को इससे कितना फायदा होता है….