केरल के सबरीमला मंदिर में 10 वर्ष से 50 वर्ष तक महिलाओं के प्रवेश को लेकर हंगामा मचा हुआ है. सुप्रीम कोर्ट में विशेष उम्र की महिलाओं की पाबंदी हटा दी है. लेकिन लोग कोर्ट का आदेश मानने को तैयार नहीं हैं.
स्वामी अयप्पा मंदिर में मासिक धर्म की उम्र में महिलाओं के जाने पर पाबंदी थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे खत्म कर दिया. अब ये भी खबरें आ रही हैं कि पहले भी कई बार महिलाओं ने मंदिर में प्रवेश किया है. सितंबर में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद कई महिलाओं ने मंदिर में प्रवेश करने की कोशिश की लेकिन उन्हें घुसने नहीं दिया गया. लेकिन दो जनवरी को सुबह पौने चार बजे कनकदुर्गा और बिंदु अम्मिनि नाम की दो महिलाओं ने मंदिर में प्रवेश किया और स्वामी अयप्पा के दर्शन किए.
दोनों की उम्र 40 साल के आसपास है. इसके बाद केरल सुलगने लगा. कहा ये जा रहा है कि 2 जनवरी को पहली बार हुआ जब इस उम्र वर्ग की महिला ने मंदिर में प्रवेश किया हो. सबरीमला मंदिर की देखरेख करने वाले त्रावणकोर देवासम बोर्ड को इन प्रवेशों की जानकारी भी थी और इन महिलाओं को बोर्ड से इजाजत मिली थी. साथ ही इन भक्तों को पूजानुष्ठान करने की फ़ीस के बदले मिलने वाली रसीद भी जारी की गई थी. तो अब सवाल ये है कि 2 जनवरी से पहले क्या कभी महिलाओं ने मंदिर में प्रवेश नहीं किया ? इसका जवाब हमें कुछ दस्तावेज खंगालने के बाद मिलेगा.
केरल हाई कोर्ट ने सबरीमला का जो केस चला उसमें ये बात मिलती है कि मंदिर में मासिक धर्म होने वाली महिलाओं ने पहले भी प्रवेश किया है.
- 19 अगस्त 1990 को एक मलयालम दैनिक अखबार में छपी खबर के मुताबिक देवासम बोर्ड की उस वक्त की कमिश्नर चंद्रिका अपनी पोती के अन्नप्राशन्न समारोह में शामिल होती दिखाई दे रही हैं. इस तस्वीर में चंद्रिका के साथ उनकी पोती की मां यानी उनकी बेटी भी मौजूद थीं. समारोह सबरीमला मंदिर में आयोजित किया गया था.
- इस घटना के बाद केरल हाई कोर्ट में एस. महादेवन नाम के शख्स ने याचिका दाखिल करके कहा था कि सबरीमला मंदिर में VIP को अनुचित रूप से प्राथमिकता दी जा रही है और 10 से 50 साल की महिलाओं को प्रवेश करने दिया जा रहा है, जो परंपरा के खिलाफ है.
- इस याचिका को जनहित याचिका में तब्दील करके कोर्ट ने चंद्रिका को कोर्ट में पेश होने के लिए कहा गया था. कोर्ट में चंद्रिका ने ये कहा था कि उन्हें और उनकी बेटी ने अन्न प्राशन्न समारोह में हिस्सा लिया था. उन्होंने कोर्ट में ये भी बताया था कि मंदिर में उस दिन कई और बच्चों के लिए अन्न प्राशन्न समारोह का आयोजन किया गया था और उन बच्चों की मांएं भी वहां मौजूद थीं, और वो 50 साल से कम उम्र की थीं.
- कोर्ट में त्रावणकोर देवासम बोर्ड ने मांग की थी कि इस मामले में आम नागरिक के किसी अधिकार का उल्लंघन नहीं किया गया है, इसलिए इस याचिका को रद्द कर किया जाए.
इस घटना के करीब ढाई दशक बाद 2016 में सुप्रीम कोर्ट में इसी देवासम बोर्ड ने महिलाओं के प्रवेश का विरोध किया. बोर्ड ने ये भी बताया है कि 10 से 50 साल तक की महिलाएं पहले भी मंदिर में प्रवेश पाती रही हैं लेकिन विशेष आयोजन के लिए बोर्ड भक्तों से फीस लिया करता था. बोर्ड ने कोर्ट में ये दलील दी कि मलयालम महीनों की शुरुआत और अन्न प्राशन्न के मौकों पर हर उम्र की महिलाएं मंदिर में प्रवेश की अनुमति थी. उस वक्त मकरविलयाकू पूजा, मंडला पूजा और मलयालम कैलेंडर के अनुसार साल की शुरुआत में होने वाले विशू त्योहार के दौरान 10 से 50 साल की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं थी. केरल हाईकोर्ट के दो न्यायाधीशों की बेंच के फैसले के मुताबिक
“त्रावणकोर के महाराजा, महारानी और उनके दीवान ने मलयालम कैलेंडर के अनुसार साल 1115 में स्वामी अयप्पा के दर्शन के लिए मंदिर में प्रवेश किया था. पुराने दिनों में मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर कोई रोक नहीं थी लेकिन बड़ी संख्या में महिलाएं मंदिर नहीं आती थीं.”
केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने ये फैसला 1991 में सुनाया था. फैसले में ये भी कहा था कि बीते 40 सालों में धार्मिक पूजानुष्ठानों में बदलाव आया है, ख़ास तौर से 1950 के बाद से ज्यादा बदलाव देखा गया है.
27 नवंबर 1956 में त्रावणकोर देवासम बोर्ड ने 10 से 55 साल की महिलाओं के प्रवेश पर रोक लगाई
1969 में कुछ आयोजनों को देखते हुए नियमों में बदलाव किया गया और फ्लैग स्टाफ़ की नियुक्ति की
न्यायमूर्ति बालनारायण मारार ने बताया कि पुजारी के सुझावों के बाद ही ये बदलाव लागू किए गए थे
SC के पूर्व मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्र ने अपने फैसले में भी हाई कोर्ट के फ़ैसले का ज़िक्र किया था
अगर हाईकोर्ट के फैसले को पढ़े तो इसमें साफ है कि 2 जनवरी 2019 को जिन दो महिलाएं मदिंर में प्रवेश किया वो पहली दो महिलाएं नहीं थीं. इससे पहले सबरीमला मंदिर में महिलाओं का प्रवेश होता रहा है. सालों पहले भगवान अय्यपा के दर्शनों का मौका हर उम्र की महिलाओं को मिलता रहा है. हां ये बात और है कि कुछ विशेष मौकों पर ये पाबंदी होती थी.