राजनीति में कब क्या हो जाए कहा नहीं जा सकता. क्या किसी ने सोचा था कि एक दूसरे के कट्टर दुश्मन रहे माया-अखिलेश एक साख मिलकर चुनाव लड़ने की तैयारी करेंगे. क्या दो सा पहले तक ये कहा जा सकता था कि अखिलेश यादव मायवती का भविष्य संवारेंगे. लेकिन राजनीति के गणित का समझना बेहद मुश्किल काम है.
2019 राजनीतिक तौर पर बेहद महत्वपूर्ण साल है. चुनावी साल होने के साथ-साथ ये साल कई नेताओं का भविष्य तय करेगा. फिर चांहे वो अखिलेश यादव हों या फिर मायावती. दोनों ही नेताओं ने पिछले करीब साल आठ महीनों से जो बिसात बिछाई है उससे बीजेपी में बौखलाहट दिखाई दे रही है. यही कारण है कि बीजेपी ने जातीय गठजोड़ बनाने के लिए अपनी फौज मैदान में उतारी हुई है. इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि अखिलेश राजनीति के भविष्य हैं और अभी उनमें बहुत सम्भावना है. वहीं मायावती के लिए ये चुनाव करो या मरो वाला है. इस चुनाव के बाद शायाद उनके लिए सियासी रास्ते बेहद दुर्गम हो जाएं. क्योंकि दलितों में नए नेतृत्व का भी उभार हो रहा है. ऐसे में अखिलेश यादव में मायावती अपना भविष्य देख रहे हैं.
2014 को दोहराना नहीं चाहती माया
पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को यूपी में 42.63 प्रतिशत, सपा को 22.35 प्रतिशत, बसपा को 19.77 और कांग्रेस को 7.53 प्रतिशत वोट मिले थे. इससे पहले 2012 के विधान सभा चुनाव में सपा ने 29.13 प्रतिशत, बसपा को 25.91 प्रतिशत, भाजपा को 15 प्रतिशत और कांग्रेस को 11.65 प्रतिशत वोट मिले थे, 2009 के लोकसभा चुना में बसपा को 27.20 प्रतिशत, सपा को 23.26 प्रतिशत, भाजपा को 17.50 प्रतिशत और कांग्रेस को 11.65 प्रतिशत वोट मिले थे. 2004 के लोक सभा चुनाव में सपा को 26.74 प्रतिशत, बसपा को 24.67 प्रतिशत, भाजपा को 22.17 प्रतिशत और कांग्रेस को 12.04 प्रतिशत वोट मिले थे. ये आकंड़े देखें तो सपा-बसपा मिलकर बीजेपी सफाया करने के लिए काफी हैं और माया-अखिलेश इसी गणित को देख रहे हैं.
दोनों नेता जल्द करेंगे बड़ा एलान
सपा-बसपा में आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर समझौता हो गया है. खबरों के मुताबिक दोनों दल 37-37 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे और बाकी की 6 सीटों सहयोगियों के लिए छोड़ेंगे. ये दोनों नेता यूपी में गैर-यादव और गैर-जाटव वोटर्स को लुभाने की भी कोशिश में हैं. ऐसे में उन्होंने अपने गठबंधन में शामिल होने वाले गैर-जातीय दलों के लिए भी जगह रखने का फैसला किया है. 2-2 सीटें राष्ट्रीय लोक दल और कांग्रेस के खाते में रहेंगी. कहा जा रहा है कि दोनों नेता औपचारिक तौर पर 15 जनवरी के बाद सीटों की घोषणा कर सकते हैं. इस गठबंधन में अखिलेश यादव ने यूपी में योगी सरकार में मंत्री ओमप्रकाश राजभर की पार्टी एसबीएसपी के लिए भी एक सीट रखने का फैसला किया है.
कांग्रेस के साथ गठबंधन अभी तय नहीं
सपा-बसपा कांग्रेस को सिर्फ दो सीटें देने के मूड में हैं. रायबरेली और अमेठी सीट पर ये दोनों पार्टियां अपने उम्मीदवार नहीं उतारेंगी. 2014 के लोकसभा चुनाव में सोनिया गांधी ने रायबरेली और राहुल गांधी ने अमेठी सीट पर जीत हासिल की थी. हालांकि इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि आखिरी वक्त में कांग्रेस यूपी में गठबंधन का हिस्सा बन जाए. क्योंकि ऐसी खबरें आ रही है कि अखिलेश और मायावती कांग्रेस को गठबंधन में रखने के पक्ष में हैं.
पश्चिम यूपी के लिए बनाया प्लान
अखिलेश यादव ने पश्चिम यूपी में जाट वोटर्स का सपोर्ट हासिल करने के लिए रालोद को गठबंधन में रखा है. बागपत और मथुरा सीट रालोद को दी जाएगी. ये दोनों सीटें पार्टी अध्यक्ष अजित सिंह और उपाध्यक्ष जयंत चौधरी के परंपरागत संसदीय क्षेत्र भी हैं. अगर 2014 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो बीजेपी ने यूपी की 80 सीटों में से अपने सहयोगी अपना दल के साथ 73 सीटें जीती थीं, सपा 5 और कांग्रेस महज 2 सीट ही जीत पाई थी. मायावती को तो इस चुनाव में एक भी सीट नहीं मिली थी. लिहाजा अखिलेश मायावती के लिए आखिरी उम्मीद सरीखे हैं. मायावती को उम्मीद है कि अखिलेश से साथ गठबंधन करके वो एक बार फिर से वापसी कर पाएंगी. ये उम्मीद इस लिए भी बंधी है क्योंकि गठबंधन में हुए उपचुनाव में दोनों पार्टियों का वोट एक दूसरे को ट्रांसफर हुआ है.