15 जनवरी को कन्नौज की सांसद और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव का जन्मदिन है. कहा ये जा रहा है कि इस दिन अखिलेश यादव कोई बड़ा एलान कर सकते हैं. ये ऐसा एलान होगा जो समाजवादी पार्टी के भविष्य के लिए बहुत अहम होने वाला है. विधानसभा चुनाव में हार और परिवार में टकरार ने अखिलेश यादव को राजनीति में नई संभावनाएं तलाशने का मौका दिया है. अखिलेश इसका भरपूर फायदा उठाना चाहते हैं.
नई साल में मायावती और अखिलेश यादव ने दिल्ली में मुलाकात की थी. माना जा रहा है कि इस मुलाकात में दोनों के बीच आगामी चुनाव को लेकर सीटों के बंटवारे की बात फाइनल हो गई है और 15 जनवरी यानी अपनी पत्नी के जन्मदिन के मौके पर अखिलेश इसका एलान कर सकते हैं. सपा-बसपा का गठबंधन यूपी की राजनीति में बीजेपी का खेल खराब करने के लिए काफी है.
SP-BSP का वोटबैंक BJP की मुश्किल
अखिलेश और मायावती के साथ आने का मतलब ये है कि दोनों पार्टियों का अपना-अपना वोट बैंक एक साथ आएगा. ये वोटबैंक इतना है कि ये विनिंग कॉम्बिनेशन बनाने के लिए काफी है. 2014 के लोकसभा चुनाव में जब बीजेपी ने 73 सीटें जीती थीं तो उसे 42.6 प्रतिशत वोट मिले थे, सपा को 22.3 और बसपा को 20 प्रतिशत वोट मिले थे. 2017 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने 312 सीटें जीतीं और उसे 39.7 प्रतिशत वोट मिले थे. वहीं बसपा को 22 और सपा को 22 प्रतिशत वोट मिले थे. अब पानी इन दोनों पार्टियों के वोट मिला दें तो फिर ये आकंड़ा आसानी बीजेपी को शिकस्त देने वाला बन जाता है. यही गणित बीजेपी को बेचैन कर रहा है. इसकी झलक गोरखपुर, फूलपुर और कैराना के उपचुनावों के दौरान दिखाई दी जहां बीजेपी बुरी तरह के हार गई. बीजेपी ने यूपी में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा को यूपी का चुनाव प्रभारी बनाया है. इसके अलावा गोरधन झपाड़िया, दुष्यंत गौतम और नरोत्तम मिश्रा को सह-प्रभारी बनाया है. इस सबके अलावा बीजेपी मोदी मैजिक से उम्मीद है.
सपा-बसपा को राजनीतिक इतिहास
करीब 25 साल पहले, 1993 में मुलायम सिंह यादव ने कांशीराम से हाथ मिलाया था और बीजेपी को पटखनी दी थी. उस वक्त नारा दिया गया था कि “मिले मुलायम-कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्रीराम.” नारा सही हुआ और वाकई में बीजेपी बुरी तरह हारी थी. यही कारण है कि मायावती अखिलेश साथ मिलकर बीजेपी की नींदे हराम करने का दावा कर रही हैं. इन दोनों पार्टियों के मिलन से बीजेपी की हालत खराब इसलिए भी है क्योंकि यूपी में अगर उसका प्रदर्शन खराब रहा तो फिर किसी और राज्य में करना नामुमकिन होगा. यूपी ही ऐसा राज्य है जहां से दिल्ली पहुंचा जा सकता है. यही वो राज्य है जहां से जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, चौधरी चरण सिंह, राजीव गांधी, विश्वनाथ प्रताप सिंह, चंद्रशेखर, अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी भी देश के पीएम की कुर्सी तक पहुंचे हैं.