कुंभ मेले को लेकर योगी सरकार कई महीनों से तैयारियों में लगी हुई है. दुनिया के सबसे बड़े मेलों में शुमार ये मेला आध्यात्मिक लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. मेले की तैयारियों में सबसे महत्यपूर्ण जो होता है वो है अखाड़ों का इंतजाम. अखाड़ा सामाजिक व्यवस्था, एकता और संस्कृति और नैतिकता का प्रतीक है. समाज में आध्यात्मिक महत्व मूल्यों की स्थापना करना ही अखाड़ों का मुख्य उद्देश्य है.
अखाड़ा अखण्ड शब्द से बना है. अखण्ड यानी विभाजित करना. कहानी ये है कि आदि गुरु शंकराचार्य ने सनातन धर्म की रक्षा के लिए साधुओं के संघों को मिलाने का प्रयास किया था, उसी प्रयास के फलस्वरूप सनातन धर्म की रक्षा और मजबूती बनाये रखने, परम्पराओं और विश्वासों का अभ्यास करने वालों को एकजुट करने के लिए अखाड़ों की स्थापना हुई। अखाड़ों में जो लोग होते हैं वो शास्त्र और शस्त्र दोनों में पारंगत होते हैं.
कैसे हुआ अखाड़ों का जन्म ?
आदि शंकराचार्य ने बौद्ध धर्म के बढ़ते प्रसार और मुगलों के आक्रमण से हिन्दू संस्कृति को बचाने के लिए अखाड़ों की स्थापना की थी. शाही सवारी, हाथी-घोड़े की सजावट, घंटा-नाद, नागा-अखाड़ों के करतब और तलवार और बंदूक का खुले आम प्रदर्शन अखाड़ों की पहचान होती है. अखाड़ों से जुड़े संतों का नियम ये है कि जो शास्त्र से नहीं मानते, उन्हें शस्त्र से मनाया जाता है. अखाड़ों ने आजादी में भी अहम भूमिका निभाई और आजादी के बाद सैन्य चरित्र तो त्याग दिया. शुरू में चार प्रमुख अखाड़े थे, लेकिन वैचारिक बंटवारे की वजह से इनकी संख्या बढ़ गई.
शैव अखाड़े: इस श्रेणी के इष्ट भगवान शिव हैं. ये शिव के विभिन्न स्वरूपों की आराधना अपनी-अपनी मान्यताओं के आधार पर करते हैं.
वैष्णव अखाड़े:इस श्रेणी के इष्ट भगवान विष्णु हैं. ये विष्णु के विभिन्न स्वरूपों की आराधना अपनी-अपनी मान्यताओं के आधार पर करते हैं.
उदासीन अखाड़ा: सिक्ख सम्प्रदाय के आदि गुरु श्री नानकदेव के पुत्र श्री चंद्रदेव जी को उदासीन मत का प्रवर्तक माना जाता है. इस पन्थ के अनुयाई प्रणव की उपासना करते हैं.
कुंभ या अर्धकुंभ में साधु-संतों के कुल 13 अखाड़ों हिस्सा लेते हैं. इन अखाड़ों की स्नान पर्व की परंपरा है औरइसके लिए सरकार विशेष तैयारियां करती है.
बैरागी वैष्णव संप्रदाय के 3 अखाड़े
- श्री दिगम्बर अणि अखाड़ा- शामलाजी खाकचौक मंदिर, सांभर कांथा (गुजरात)-इस अखाड़े को वैष्णव संप्रदाय में राजा कहा जाता है। इस अखाड़े में सबसे ज्यादा खालसा यानी 431 हैं।
- श्री निर्वानी अणि अखाड़ा- हनुमान गादी, अयोध्या (उत्तर प्रदेश)-इस अखाड़े में कुश्ती प्रमुख होती है जो इनके जीवन का एक हिस्सा है। इसी कारण से अखाड़े के कई संत प्रोफेशनल पहलवान रह चुके हैं।
- श्री पंच निर्मोही अणि अखाड़ा- धीर समीर मंदिर बंसीवट, वृंदावन, मथुरा (उत्तर प्रदेश)। वैष्णव संप्रदाय के तीनों अणि अखाड़ों में से इसी में सबसे ज्यादा अखाड़े शामिल हैं। इनकी संख्या 9 है।
शैव संन्यासी संप्रदाय के 7 अखाड़े है
- श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी- दारागंज प्रयाग (उत्तर प्रदेश)। महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की पूजा का जिम्मार इसी अखाड़े के पास है. यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है।
- श्री पंच अटल अखाड़ा- चैक हनुमान, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)-यह अखाड़ा अपने आप पर ही अलग है। इस अखाड़े में केवल ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य दीक्षा ले सकते है और कोई अन्य इस अखाड़े में नहीं आ सकता है।
- श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी- दारागंज, प्रयाग (उत्तर प्रदेश)-यह अखाड़ा सबसे ज्यादा शिक्षित अखाड़ा है। इस अखाड़े में करीब 50 महामंडलेश्र्चर हैं।
- श्री तपोनिधि आनंद अखाड़ा पंचायती- त्रंब्यकेश्वर, नासिक (महाराष्ट्र)-यह शैव अखाड़ा है जिसे आज तक एक भी महामंडलेश्वर नहीं बनाया गया है। इस अखाड़े के आचार्य का पद ही प्रमुख होता है।
- श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा- बाबा हनुमान घाट, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)- सबसे बड़ा अखाड़ा है। करीब 5 लाख साधु संत इससे जुड़े हैं।
- श्री पंचदशनाम आवाहन अखाड़ा- दशाश्वमेघ घाट, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)। यह शैव अखाड़ा है जिसे आज तक एक भी महामंडलेश्वर नहीं बनाया गया है। इस अखाड़े के आचार्य का पद ही प्रमुख होता है। अन्यय अखाड़ों में महिला साध्वियों को भी दीक्षा दी जाती है लेकिन इस अखाड़े में ऐसी कोई परंपरा नहीं है।
- श्री पंचदशनाम पंच अग्नि अखाड़ा- गिरीनगर, भवनाथ, जूनागढ़ (गुजरात) इस अखाड़े में केवल ब्रह्मचारी ब्राह्मण ही दीक्षा ले सकते है। कोई अन्य दीक्षा नहीं ले सकता है।
उदासीन संप्रदाय के 3 अखाड़े :
- श्री पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा- कृष्णनगर, कीटगंज, प्रयाग (उत्तर प्रदेश)-इस अखाड़े उद्देश्यी सेवा करना है। इस अखाड़े में केवल 4 मंहत होते हैं जो कभी कामों से निवृत्त नहीं होते है।
- श्री पंचायती अखाड़ा नया उदासीन- कनखल, हरिद्वार (उत्तराखंड)। इस अखाड़े में उन्हीं लोगों को नागा बनाया जाता है जिनकी दाढ़ी-मूंछ न निकली हो यानी 8 से 12 साल तक के।
- श्री निर्मल पंचायती अखाड़ा- कनखल, हरिद्वार (उत्तराखंड)-इस अखाड़ा में और अखाड़ो की तरह धूम्रपान की इजाजत नहीं है। इस बारे में अखाड़े के सभी केंद्रों के गेट पर इसकी सूचना लिखी होती है।
सिख, वैष्णव और शैव साधु-संतों के अखाड़े भी कुंभ में हिस्सा लेते हैं. शैव संप्रदाय के आवाह्न, अटल, आनंद, निरंजनी, महानिर्वाणी, अग्नि, जूना, गुदद, वैष्णव संप्रदाय के निर्मोही, दिगंबर, निर्वाणी और उदासीन संप्रदाय के बड़ा उदासीन, नया उदासीन इसके अलावा निर्मल संप्रदाय का निर्मल अखाड़ा ये वो अखाड़े हैं जिनके बिना कुंभ संभव नहीं है.