बीजेपी बेचैन हैं ये सोचकर की अगर यूपी में सपा, बसपा और कांग्रेस एक साथ आकर चुनाव लड़ गए तो क्या होगा? बेचैनी वाजिब है क्योंकि इन तीनों दलों का अगर वोट शेयर मिला दें तो बीजेपी का सफाया होना लगभग तय है.
हाल फिलहाल में देश की सियासत ने जो करवट बदली है उससे कांग्रेस फ्रंटफुट पर आ गई है और क्षत्रपों के सहयोग से वो बीजेपी को 2019 में पटखनी देने का हर संभव प्रयास कर रही है. बात उत्तरप्रदेश की करें तो यहां पर 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी+ को 80 में 73 सीटें मिली थीं लेकिन अब हालात बदल गए हैं. 2019 क्या हो सकता है वो इससे समझिए.
वोट ट्रांसफर हो रहा है
उत्तरप्रदेश में 2014 के बाद उपचुनावों में सपा और बसपा ने ये करके दिखाया है कि दोनों पार्टियों का वोट एक दूसरे को ट्रांसफर हो रहा है. हालांकि कि कांग्रेस के मामले में यहां एक परेशानी ये है कि यूपी में बसपा ने 1996 में कांग्रेस से गठबंधन किया था और उस वक्त मायावती ने ये कहा था कि उनका वोट तो कांग्रेस को ट्रांसफर हुआ लेकिन कांग्रेस का उन्हें नहीं मिला. वहीं सपा और कांग्रेस का गठबंधन कामयाब नहीं हुआ पिछले विधानसभा चुनाव में दोनों पार्टियों का प्रदर्शन खराब था सपा और बसपा कांग्रेस के साथ लड़ने में हिचक रहे हैं. हालांकि तीन राज्यों में जीतकर कांग्रेस ने गठबंधन के गणित को बदल दिया.
तीनो पार्टियां को वोट प्रतिशत
पीक्स मीडिया रिसर्च का कहना है कि बसपा 19, सपा 22 पर्सेंट और कांग्रेस के 6 फीसदी वोट को जोड़ दें तो ये करीब 46 फीसदी पहुंच जाता है. अगर इस प्रतिशत के हिसाब को ही लें तो और इनको मिलाकर देखें तो 2014 में बीजेपी ने जो 73 सीटें जीती थीं वो गठबंधन के बाद सिर्फ 15 सीटों पर सिमटकर रह जाएंगीं. क्योंकि अगर ये वोट फीसद मिलेगा तो बीजेपी की हालत खस्ता होना तय है.
मुसलमान वोटों का बिखराव रुकेगा
उत्तरप्रदेश में मुसलमान वोट करीब साढ़े 17 फीसदी है और राजनीतिक जानकार ऐसा मानते हैं कि पिछले लोकसभा के चुनाव में बीजेपी को मुसलमानों को करीब 10 फीसदी वोट मिला था. अब अगर तीनों पार्टियां साथ मिलकर लड़ती हैं तो मुसलमान वोटों का बिखराव नहीं होगा और ये एकमुश्त गठबंधन के प्रत्याशी को ट्रांसफर होगा ऐसे में बीजेपी की मुश्किलें बढ़नी तय हैं.
अल्पसंख्यकों और दलितों का गठबंधन के साथ जाना
2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की ये ताकत थी कि उसने सभी पार्टियों के कोर वोटबैंक में सेंध लगाई थी. लेकिन 2014 से अब तक गंगा में बहुत पानी बह चुका है और अब उसका अपना वोटबैंक ही उससे नाराज चल रहा है. SC/ST बिल पर अध्यादेश लाने के मामने में सवर्ण समाज ने पार्टी का विरोध किया और राम मंदिर को लेकर हिंदू के एक तबके में नाराजगी है. इसके अलावा मुसलमानों और दलितों पर जो हिंसा की घटनाएं हुईं है उसने बीजेपी के लिए मुश्किलें बढ़ा दीं हैं.