40 लोकसभा सीटों वाले बिहार की राजनीति इन दिनों उथल-पुथल के दौर से गुजर रही है. लोकसभा से कुछ महीने पहले उपेंद्र कुशवाहा ने इस्तीफा दे दिया है. राष्ट्रीय लोक समता पार्टी प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा पिछले कुछ दिनों से एनडीए से नाखुश चल रहे थे. कई बार रालोसपा प्रमुख ने नितीश कुमार को भी घेरा था. जेडीयू और बीजेपी में 50-50 सीटों का बंटवारा होने के बाद ये साफ हो गया था कि बीजेपी रालोसपा को सिर्फ 2 सीटें देने के मूड में है और यही बात उपेंद्र के बीजेपी से अलग होने की वजह बनी.
मोतीहारी की एक रैली में उपेंद्र कुशवाहा ने जिस तरह से बीजेपी पर निशाना साधा था उससे स्पष्ट हो गया था कि कुशवाहा ज्यादा दिन एनडीए में नहीं रहेंगे. उन्होंने कहा था.
“जनता के ध्यान को भटकाने के लिए अंतिम समय में मंदिर निर्माण की बात की जा रही है. सामने चुनाव है तो चर्चा इस बात पर होनी चाहिए कि हमने महंगाई, बेरोजगारी, ग़रीबी दूर की या नहीं? लेकिन देश की जनता इस पर सवाल नहीं पूछे इसलिए वे (भाजपा) लोकसभा चुनाव के पहले मंदिर निर्माण का मुद्दा उठाने की बात कर रहे हैं. रालोसपा भाजपा के इस रवैये का सख्त विरोध करती है. हम इस पर ऐतराज़ व्यक्त करते हैं. हम भाजपा से कहना चाहते हैं कि मंदिर निर्माण में हस्तक्षेप न करे और वह कम-से-कम चुनावी लाभ के लिए यह काम बिल्कुल न करे.”
उपेंद्र कुशवाहा, रालोसपा प्रमुख
क्या नरेंद्र मोदी को कुशवाहा की जरूरत है ?
मुंगेर के पोलो मैदान में 24 नवंबर रालोसपा ने ‘हल्ला बोल, दरवाजा खोल’ कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा थाकि “मैं ईमानदारी से कहना चाहता हूँ कि मैं एनडीए में हूँ और मैं चाहता हूँ कि नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बने रहें.” महत्वपूर्ण ये है कि क्या वाकई में नरेन्द्र मोदी को उपेंद्र कुशवाह की जरूरत नहीं है क्योंकि 2014 के मुक़ाबले आज बिहार में बीजेपी के लिए ज्यादा माकूल हालात नहीं है. ऐसे में नरेंद्र मोदी को उपेन्द्र कुशवाहा की ज़रूरत है. लेकिन फिर भी उन्हें मनाने की कोशिश नहीं की गई.