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राजस्थान का किला बचा पाएंगी वसुंधरा ?

जयपुर: राजस्थान में विधानसभा चुनाव दिलचस्प इसलिए हो गया है क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी रैलियों में खुलेआम राहुल गांधी को ये कहकर घेर रहे हैं कि चांदी की चम्मच लेकर पैदा होने वाले गरीबों के दर्द को क्या जाने. ये बातें वो तब कह रहे हैं जब वसुंधरा राजे मंच पर मौजूद हैं. आगे बताने की जरूरत नहीं है कि हम क्या बताने की कोशिश कर रहे हैं.

बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही दलों के अपने अपने दावे हैं. रियासत काल में राजस्थान ने कई जंग देखी हैं लेकिन ये जंग दिलचस्प हो गई है. दो हजार से ज्यादा उम्मीदवार मैदान में हैं और बीजेपी कांग्रेस के अलावा भी कई छोटी पार्टियां मैदान में हैं. निर्दलीय उम्मीदवारों की भी कमी नहीं है. नई पार्टी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी और भारत वाहिनी पार्टी ने 123 उम्मीदवार खड़े किए हैं. निर्दलीय विधायक हनुमान बेनीवाल भी पूरी ताकत झोंक रहे हैं. बसपा ने 190 से ज्यादा सीटों अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं. रैली हैं, रोड शो हैं, एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप हैं, कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि माहौल गर्म है.

विद्रोही भी झोंक रहे हैं ताकत

राजस्थान में बीजेपी सरकार में मंत्री रहे चार चेहरे मैदान में है. बीजेपी का एक संसदीय सचिव और एक विधायक भी विद्रोह करके चुनावी मैदान में कूद गया है. कांग्रेस पूर्व मंत्री और विधायक भी टिकट न मिलने से बागी होकर अपनी चुनौती पेश कर रहे हैं. विधायक बेनीवाल की पार्टी भी दम खम के साथ लगी हुई है. चुंकि बेनीवाल प्रभावशाली जाट समुदाय से आते हैं लिहाजा असर करेंगे.

सरकार के खिलाफ है नाराजगी

इस बार चुनाव में वसुंधरा भरे ही दावा कर रही हों कि वो जीत रही हैं लेकिन राजस्थान में रोज़गार एक बड़ा मुद्दा है. किसानों की नराजगी है, दलित भी सरकार से दूर जा रहे हैं. लोग रोज़गार, जीएसटी और नोटबंदी को लेकर केंद्र सरकार से भी खफ़ा हैं. तो ऐसे मौके को भुनाने की कोशिश लगातार जारी है. लेकिन क्या आखिरी वक्त में वसुंधरा माहौल बदल देंगी. क्योंकि जैसे जैसे मतदान का दिन करीब आ रहा है मंदिर, जाति और धर्म-आस्था के मुद्दे गर्म हो रहे हैं.

 

 

 

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