राजस्थान, एक ऐसा राज्य जिसके कण-कण में छिपी है रजवाड़ों की हनक और यही हनक इस राज्य को खास बनाती है. 7 दिसंबर को 200 विधानसभा सीटों पर वोट डाले जाएंगे और तब देखना होगा इतिहास खुद को दोहराएगा या फिर राजे राजस्थान की सत्ता पर काबिज होंगी. अगर राजस्थान की इतिहास की बात करें तो राजस्थान का गठन 30 मार्च 1949 को भारत के सातवें राज्य के रूप में हुआ था. 33 जिलों और 200 विधानसभा सीटों वाले इस राज्य के पहले मुख्यमंत्री थे हीरालाल शास्त्री. राजस्थान ने अभी तक 14 मुख्यमंत्री देखे हैं जिसमें मोहन लाल सुखाड़िया ने सूबे की कमान सबसे ज्यादा बार संभाली है. वो चार बार राजस्थान की सत्ता सरदार रहे.
राजस्थान में 13 मार्च 1967, 29 अगस्त 1973, 16 मार्च 1980 और 15 दिसंबर 1992 को राष्ट्रपति शासन भी लग चुका है. और एक बात जो इस राज्य के बारे में कही जाती है वो ये कि यहां 1990 के बाद से कोई भी दल दोबारा अपनी सरकार नहीं बना पाया. 1990 से पहले कांग्रेस 1949 से लगातार 18 साल सरकार में रही और 1977 में भैंरोसिंह शेखावत ऐसे पहले नेता थे जो राजस्थान के गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने थे. उस वक्त भारतीय जनता पार्टी का नाम जनता पार्टी हुआ करता था
1980 में भैंरोसिंह शेखावत के इस्तीफे के बाद एक बार फिर कांग्रेस सत्ता में आई और दस साल तक के लिए अपनी सीट पक्की कर ली लेकिन एक बार फिर भाजपाई भैंरोसिंह शेखावत कांग्रेस का तिलिस्म तोड़ने में कामयाब रहे और 4 मार्च 1990 को राजस्थान के दोबारा मुख्यमंत्री बनें. तब से लेकर आज तक सत्ता की पारी एक बार कांग्रेस तो दूसरी बार भाजपा के हाथों आती रही है. क्या इस बार भी ट्रेंड बना रहेगा ये देखना दिलचस्प है.