सरकारों की नीतियां लोगों के हितों के लिए बल्कि चुनाव जीतने के लिए बनाई जाती हैं. जहां वोटबैंक पर असर पड़े काम वहीं करो बाकी सब गए भाड़ में. ये बेसुध होने की पराकाष्ठा नहीं तो और क्या है कि यमुना किनारे रह रहे लाखों लोगों जो पीने का पानी मिल रहा है वो हद से ज्यादा खतरनाक स्तर पर पहुंच चुका है और सरकार के पास को नीति नहीं है.
यूपी में सहारनपुर से निकलती है हिंडन और ये बागपत, शामली, मुज़फ़्फ़रनगर, मेरठ और ग़ाज़ियाबाद से होती हुई यमुना में मिल जाती है. जिन 6 जिलों से ये गुजरती है उन जिलों में इस नदी और इसकी सहायक कृष्णा और काली नदी के किनारे करीब 150 से ज्यादा गांव बसे हैं. सरकारी आंकड़े बताते हैं कि इन जिलों में करीब 316 फ़ैक्ट्रियां हैं जिनमें से 221 फ़ैक्ट्रियां संचालित होती हैं. हैरानी होगी आपको ये जानकर की इस सभी फैक्ट्रियों का कचरा और जगह नदियों में ट्रीट किए डाल दिया जाता है.
हालात ये हैं कि इस पूरे इलाके में भूजल तक फैक्ट्रियों का जहर पहुंच चुका है और अब यहां से जो नककूप हैं हैंडपंप हैं उनमें से गहरा भूरा, लाल पानी निकलता है और यहां के लोग यही पानी पीते हैं. पारा, कैडमियम, क्लोराइड, सल्फ़ाइड, जैसे हैवी मेटल पानी में मिले होते हैं जिनके पास पैसा है उन्होंने गांव में फिल्टर लगवा लिए हैं लेकिन बड़ी आबादी यही जहरीला पानी पीती है. 2016 में बागपत के स्वास्थ्य विभाग ने इस इलाकों का मेडिकल सर्वे कराया था. सर्वे में पता चला था कि इन गांव के लोग कैंसर, चर्म रोग, हैपेटाइटस और अपंगता जैसी समस्या से पीड़ित हो रहे हैं. कुछ गांव तो ऐसे हैं जहां सैकड़ों लोग कैंसर से पीड़ित हैं और दर्जनों लोगों की मौत हो चुकी है.
ऐसा नहीं हुआ कि इस दिशा में कोई काम नहीं हुआ. 2015 में ‘दोआब पर्यावरण समिति’ की याचिका पर एनजीटी ने राज्य सरकार को आदेश दिया था कि जिन भी ज़िलों का पानी प्रदूषित है वहां स्वच्छ पीने लायक़ पानी मुहैया कराया जाए. सपा की सरकार थी अखिलेश सीएम की कुर्सी पर थे फौरी तौर पर कदम उठाकर इतिश्री कर ली गई 2017 में सरकार बदल गई लेकिन इन 150 से ज्यादा गांव में कुछ नहीं बदला. पानी की जांच में ये पता चला है कि पानी में ऑक्सीजन है ही नहीं.पानी इतना जहरीला है कि इसमें जलीय जीव पनप ही नहीं सकते. ये हाल तब है दब पांच अगस्त 2015 को एनजीटी राज्य सरकार से कह चुका है कि स्वच्छ पीने योग्य पानी मुहैया कराया जाए, फैक्ट्रियां बिना ट्रीट किया हुए कचरा न बहाएं, प्रदूषित हैंड पंपों को सील किया जाए, जीपीएस लगे टैंकरों से पानी पहुंचाएं मगर कुछ नही किया गया