सियासत में हार और जीत के अपने साइड इफेक्ट होते हैं. ये भी सच है कि पार्टी के भीतर ही किसी आपसी मनमुटाव भी हार जीत की वजह से ही उभर कर बाहर आता है. अब बीजेपी बीजेपी के संदर्भ में देखें तो बीजेपी अध्यक्ष और पिछले कुछ चुनावों से राजनीति के चाणक्य का तमगा हासिल करने वाले अमित शाह के साथ भी ऐसा है हुआ है. 11 दिसंबर से बीजेपी का वो खेला सक्रिय नजर आने लगा है जो 160+ खेमा में था.
क्या है 160+ खेमा ?
2014 से पहले ये बीजेपी का वो खेमा था जो कहता था कि 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी 160 या उससे ज्यादा सीटें जीतेगी. मौजूदा वक्त की बात करें तो इस वक्त इस खेमे की अगुआई नितिन गडकरी कर रहे हैं. नितिन गडकरी बीजेपी के ऐसे नेताओं में शुमार होते हैं जो बगैर लाग लपेट के अपनी बात रखते हैं. वो जो भी बोलते है उसके माएने होते हैं.
गडकरी की ताकत ये है कि उनका ताल्लुक नागपुर से है और संघ के साथ उनके रिश्ते बहुत अच्छे हैं. 160+ खेमा उन नेताओं का क्लब है जिसमें पूर्व उपराष्ट्रपति भैरों सिंह शेखावत, राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, नितिन गडकरी, सुषमा स्वराज, राजनाथ सिंह, एलके आडवाडी जैसे नेता हैं. ये तमाम नेता मोदी को पीएम पद का उम्मीदवार बनाने के पक्ष में नहीं थे.
कौन से नेता 160+ खेमे में थे ?
उस वक्त पीएम मोदी के सामने तीन चेहरे थे जो पीएम पद की रेस में थे. लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज, लाल कृष्ण आडवाणी और राजनाथ सिंह ये तीनों ही नेता मोदी के विरोध में थे. लेकिन 11 दिसंबर को तीन राज्यों में मिली हार के बाद बीजेपी में ये 160+ खेमा सक्रिय होने लगा है. और नितिन गडकरी के हालिया बयान इस ओर इशारा करते हैं. पूर्ति घोटाले की वजह से गडकरी पीएम पद की रेस से बाहर हो गए थे और गडकरी को लगता है कि कुछ बीजेपी नेताओं ने उनका नाम इस घोटाले में उछाला था.
गडकरी का मास्टरस्ट्रोक क्या होगा ?
अब जरा गडकरी के बयानों को देखें. खुफिया ब्यूरो के अधिकारियों के कार्यक्रम में बोलते हुए गडकरी कहते हैं कि विधायक, सांसद हारते हैं तो जिम्मेदारी पार्टी अध्यक्ष की ही होती है. अब ये बयान किस ओर इशारा कर रहा आप सोचिए. इतना ही नहीं पिछले कुछ मौकों पर गडकरी बीजेपी को परेशान करने वाले बयान देते रहे हैं जैसे माल्या को माल्या जी कहना. आदि आदि.
ये भी माना जाता है कि अमित शाह- नितिन गडकरी एक दूसरे को कतई पसंद नहीं करते. जब गडकरी बीजेपी अध्यक्ष थे तो वो शाह को घंटों इंतजार करवाते थे. शाह ने इसका बदला लेते हुए गडकरी को महाराष्ट्र का सीएम नहीं बनने दिया. जबकि गडकरी इसको लेकर आश्वस्त थे. अब समय का पहिया घूम रहा है तो गडकरी फ्रंटफुट पर आ रहे हैं.
11 दिसंबर के चुनावी नतीजों ने 160+ खेमे को ऑक्सीजन दी है. जानकार मानते हैं कि आम चुनाव में बीजेपी की सीटें घटेंगी. लेकिन NDA आगे होगा और ऐसे में गडकरी 160+ खेमे की मदद से मास्टरस्ट्रोक लगाने की उम्मीद पाल रहे हैं. क्योंकि गडकरी ने अपने मंत्रालय में जो काम किया है वो उसकी वजह से सुर्खियों में बने रहते हैं.